तलाक़

अरे! काजी साहब कहाँ जा रहे है ? सुनिए जरा ।
अभी जल्दी में हूँ जरा बाद में मिलते है । - कहते हुए काजी साहब तेजी से कदम बढ़ाते हुए चले जा रहे थे ।
मैं तब तक उनके पास पहुच गया ।
क्या बात है काजी साहब बड़ी जल्दी में है आज कही दावत है क्या ? खूब दबाकर खाएंगे ।
लाहौल बिला क़ूवत आप तो हमेशा मज़ाक उड़ाते रहते है । दावत के सिवा भी और भी सिलसिले है । - क़ाजी साहब बिदकते हुए बोले ।
मैंने कहा - क्या बात है तनिक बताते तो जाइये इतनी जल्दी कहाँ जाने की पड़ी है ?
काजी साहब बोले- अरे वो फखरुद्दीन का बेटा सलीम है न ! उसी के घर जाना है ।
मैंने पूछा क्या हुआ ?
काजी साहब बोले - अरे उसने अपनी बीबी से "ज़िहार तलाक़" ले लिया पर वो मान ही नही रहा है ।
मैंने कहा ये क्या होता है ?
क़ाज़ी साहब बोले - अरे दोनों लड़ रहे थे आपस में सलीम ने कहा "अब तो चुप हो जा 'मेरी माँ' " । बस हो गया ये तलाक़ ।
मैंने कहा ये क्या बात हुई ? ये तो कोई भी कह देता है ।
क़ाजी साहब भड़क गए बोले - ऐसे कैसे कोई कह देगा कोई अपनी बीबी की तुलना किसी दूसरी औरत से कैसे कर सकता है जिससे उसकी शादी नही हो सकती है । कोई माँ से शादी कर सकता है क्या ? क़ुरान में लिखा गया है ऐसा कोई करता है तो "ज़िहार तलाक़" होता है ।
मैंने कहा - अब क्या होगा ?
क़ाज़ी साहब बोले - अब क्या होगा तीन "तूहर" की इद्दत फिर दूसरी शादी करेंगे दोनों अगर कोई गर्भ न हुआ तो अगर हुआ तो बच्चे की पैदाइश के बाद ।
मैंने कहा मेरी एक बात सलीम से कहियेगा प्लीज ।
बोले - क्या ?
कह देना दोनों मुझसे मिल लेंगे ।
क़ाजी साहब हिदायत देते हुए बोले - मैं जानता हूँ कोई खुराफात है आपके दिमाग में पर ख्याल रखियेगा मजहब का मामला है बर्दाश्त नही करेंगे ।
मैंने कहा बस कह दियो जो मैं कह रहा हूँ फिर दावत खिलाऊंगा ।

दूसरे दिन ===========

भैया सलीम आया है - मेरे कानो में आवाज पहुची मैं सेविंग में मशगूल था सुबह सुबह । 
मैंने रेजर हटाते हुए कहा कह दो बैठे अभी आता हूँ । 
थोड़ी देर में मैं बाहर आया । 
सलीम ने देखकर अभिवादन किया मैंने भी उत्तर दिया ।
और पूछा - क्या हाल है मियाँ आजकल क़ाजी साहब आपके घर का बहुत चक्कर लगा रहे है ?
कही दूसरी लाने का चक्कर तो नही है ?
सलीम सर झुकाकर उदास सा बोला - अरे भैया क्या बात कर रहे है । एक जो थी उसी से तलाक़ हो गया अनजाने में ।
हां भैया क़ाजी साहब कह रहे थे की आप बुलाये हमे कौनो काम था क्या ?
मैंने पूछा - इतना उदास क्यों हो ? बहुत मानते थे क्या अपनी बीबी को ?
अरे भैया कैसी बात करते है ? हर कोई अपनी बीबी को मानता है - वो बुदबुदाया ।
पर क़ाजी साहब कह रहे थे अब कुछ नही हो सकता ।
मैंने कहा मैं जो कहूँ करोगे ?
बोला - कहिये भैया सब कुछ कर सकता हूँ किसी तरह बचा लीजिये ।
ठीक है "सिविल मैरिज एक्ट" के अंतर्गत तुम्हारी शादी का registration करवा देता हूँ और शरीयत वाले कानूनों से बच जाओगे । मुझे जरा आज बाहर जाना है कल भी नही रहूंगा सोमवार को तुम दोनों मेरे साथ चलो फैज़ाबाद - ये कहते हुए मैं मुड़ा बरामदे से बाहर जाने को ।
लेकिन भैया ? - वो हिचकते हुए बोला ।
हमने कहा क्या लेकिन ?
क़ाजी साहब कह रहे थे की वो काफ़िर है उनकी बातों का भरोसा न करना वो तुम्हें मजहब से भ्रष्ट कर देंगे ।
हमने कहा जो तुम्हारी मर्जी वो करो अभी मैं जा रहा हूँ रविवार को शाम को मुझे बता देना क्या करना चाहते हो ?
सलीम गया । मुझे कुछ गुस्सा आ रहा था क़ाजी साहब पर ।
मैंने फ़ोन उठाया क़ाजी साहब को कॉल किया ।
जब फ़ोन मिलाया तो मदीने वाली कॉलर tune बजी ।
उधर से आवाज आई - हेल्लो
मैंने कहा - नमस्कार क़ाजी साहब । हिमांशु सिंह, लालपुर बोल रहा हूँ ।
उन्होंने कहा - बोलिये सिंह साहब ।
मैंने कहा - आपकी बहुत याद आ रही है आपके बिना दिल कुछ उदास सा है । मिलने की बहुत तमन्ना हो रही है ।
क़ाजी साहब बोले - आपकी यही आदत हमे अच्छी नही लगती आप हमेशा कटाक्ष करते रहते है ।
मैंने कहा - रविवार को जरा मिल लीजियेगा आपसे कुछ जरूरी तकरीर करनी थी ।
क़ाजी साहब ने भी सोचा होगा जान छूटी बोले ठीक है मिल लूँगा । खुदाहफिज ।। 

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