पाहन से पावन तक

शांत घाटी क्षेत्र रमणीय स्थल चारो तरफ आनन्द दाई शांति के बीच कलरव करते हुए एक झरने के किनारे दो पत्थर सदियो से पड़े हुए थे । एक दिन दुसरे से पहले वाले पत्थर ने कहा - भाई हम काफी दिनों से यही पड़े हुए है । अच्छा नही लगता हमे कुछ काम करना चाहिए । 
पहले वाले ने कहा - चुप करो, क्या करोगे फालतू में मेहनत करके जब बिना मेहनत के आनन्द आ रहा है ।
ऐसे ही पड़े पड़े कुछ दिन और बीत गए । फिर वही बात दोहराई दुसरे पत्थर ने । वही जवाब मिला पहले पत्थर से ।
आखिर सुनते सुनते पहला पत्थर आजिज आ गया बोला- तुम्हे जाना हो तो जाओ मुझे बहुत आनंद है ।
यह सुनते ही दुसरे ने झरने में छलांग लगा दी और थपेड़ो को खाता हुआ चल पड़ा ।
रास्ते में मिले पत्थरो से टकराता चोट लगती पर किसी न किसी तरफ की विकृति दूर हो जाती ।
इसी तरह चोट खाते रगड़ खाते आगे बढ़ चला और उसके फलस्वरूप वो सुडौल और सुंदर होता चला गया । झरना नदी में तब्दील हो गया और पत्थर मैदानी भाग में पहुच गया ।
एक दिन स्नान करने गए एक पण्डित जी की नजर पड़ी ।
अरे इतना सुंदर शिवलिंग - देखते ही बरबस पण्डित जी के मुँह से निकल पड़ा ।
पण्डित जी ने प्रणाम किया शिवलिंग को और अपने घर उठा लाये घर में मन्दिर में स्थापित कर दिया ।
अब रोज उस दुसरे पत्थर से बने शिवलिंग पर पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि चढ़ाया जाता था और हर कोई सम्मान करता था । आज उसे अनुभूति हुई शायद यही मेरी जगह है ।
अब चलते है पहले वाले पत्थर के पास । उस देश के प्रधामन्त्री ने बड़े पैमाने पर सड़को के निर्माण की घोषणा की । एक दिन उस घाटी में भी सड़क पर बोल्डर्स के लिए बुलडोजर आया और उस पत्थर को उठाया और लाद दिया ट्रक पर और वो चिल्लाता रहा - अरे कहाँ ले जा रहे हो मुझे ? पर कोई सुनने वाला नही । लाकर उसे स्टोन क्रेसर में डालकर टुकड़ो में तोड़ डाला गया फिर लाकर सड़क पर डाला गया रोलर से कुचला गया गर्म कोलतार पड़े आज भी वो बूटों के नीचे कुचला जा रहा है । जो भी कोई भी गन्दी चीज होती है उसका अभित्यजन उसपर कर देता है ।
और संघर्ष करने वाला दूसरा पत्थर शिवलिंग बनकर पाहन से पावन बन गया क्या मजाल कोई उसे दूषित करने के बारे में कोई सोच भी सके हर सर शिवलिंग के सजदे में झुकता है ।
ऐसा ही हमारा जीवन है हम पैदा होते है उन पत्थरो की तरह और हमारी जीवनयात्रा हमारा संघर्ष हमे "पाहन या पावन" बनाता है

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