बस यु ही
आज फिर कोई झरोखे से झाँक रहा था मुझमे ।
किसी पुरानी तालीम ने झरोखे झट से बन्द कर दिए ये कहकर ।
तू महफूज रहेगा ।
हमे इल्म न था की जिंदगी के इदारे में कुछ यु भी सबक मिलते है ।
हम जैसे लोग अब फूलो से भी डरते है ।
हमेशा लड़ते रहे खार से पर क्या मज़ाल सिकन भी आई हो जिस्म पर ।
एक फूल की सोहबत में हज़ार जख्म खाये ।
जख्म के मरहम भी थे मिले हुए नाजनीनो से ।
कुरेदते रहते है लहू की खातिर ।
किसी पुरानी तालीम ने झरोखे झट से बन्द कर दिए ये कहकर ।
तू महफूज रहेगा ।
हमे इल्म न था की जिंदगी के इदारे में कुछ यु भी सबक मिलते है ।
हम जैसे लोग अब फूलो से भी डरते है ।
हमेशा लड़ते रहे खार से पर क्या मज़ाल सिकन भी आई हो जिस्म पर ।
एक फूल की सोहबत में हज़ार जख्म खाये ।
जख्म के मरहम भी थे मिले हुए नाजनीनो से ।
कुरेदते रहते है लहू की खातिर ।
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