पार्थ की चिंता



आज पार्थ क्यों असहाय सा है ?
क्यों पड़ा निरुपाय सा है ?
गांडीव से आज कन्धे झुक गए क्यों ?
तूणीर की डोरी भार सी क्यों लग रही ?
ये कवच तेरा घात सा क्यों कर रहा ?
कुण्डलों से रक्त सा कुछ टपक रहा ।
आज क्यों भला ये व्रती अधीर है ?
क्यों तेरा पौरुष आज हो रहा क्षीण है ?
तुम अकेले सन्धान से जग जीत सकते थे ।
पाषाणों के हृदय भी चीर सकते थे ।
निस्सीम है शक्ति अपरिमित ज्ञान है तेरा ।
फिर क्यों पड़ा म्लान सा है पार्थ मेरा ।
फिर क्यों पड़ा म्लान सा है पार्थ मेरा ।।

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