तल्ख लिखूंगा
चल मानता हूँ लिखता हूँ तल्ख अक्सर ।
मज़ाक भी बनाता हूँ तेरी बातो का ।
नही करता पैरोकारी तेरे हुनर की
पर गलत को गलत न कहू कैसे ?
हर दोष पर आँखे मूद लू कैसे ?
सुन मतलब नही मुझे तेरे सम्मान से ।
मादरे वतन पर आच आई तो फिर बोलूँगा ।
हर शब्द से फिर तेरे कारनामो को तोलूँगा ।
तेरा कोई मुरीद नही मैं शहंशाह हूँ शब्दों का ।
कागजो पर बिखेर कर जीत लेता हूँ ।
इसी का शर इसी का चाप है मेरा ।
कलम की तेग के आगे साबुत धड़ कहाँ तेरा ।
हाँ और तल्ख लिखूंगा अभी भी आग लिखूंगा ।
अपने हर लफ्ज में तुझे गद्दार लिखूंगा ।
मज़ाक भी बनाता हूँ तेरी बातो का ।
नही करता पैरोकारी तेरे हुनर की
पर गलत को गलत न कहू कैसे ?
हर दोष पर आँखे मूद लू कैसे ?
सुन मतलब नही मुझे तेरे सम्मान से ।
मादरे वतन पर आच आई तो फिर बोलूँगा ।
हर शब्द से फिर तेरे कारनामो को तोलूँगा ।
तेरा कोई मुरीद नही मैं शहंशाह हूँ शब्दों का ।
कागजो पर बिखेर कर जीत लेता हूँ ।
इसी का शर इसी का चाप है मेरा ।
कलम की तेग के आगे साबुत धड़ कहाँ तेरा ।
हाँ और तल्ख लिखूंगा अभी भी आग लिखूंगा ।
अपने हर लफ्ज में तुझे गद्दार लिखूंगा ।
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