Posts

Showing posts from November, 2015

सुख की खोज

Image
मैंने सोशल मीडिया में एक post देखी जिसमे सुख के खोज की बात कही थी एक प्यारी सी कविता में । मैं यही प्रश्न लेकर पहुच गया  शिव  के पास की आखिर सुख को खोजने कहाँ जाऊं कहा मिलेगा सुख अमीर दुखी है कही गरीब खुश है क्या विडम्बना है ये सब कैसी सृष्टि है आपकी । शिव  बोले - देख हिमांशु तुम मानव क्यों सब कुछ भूलकर बस अत्यधिक लाभ की अनाशक्ति के पीछे भागते हो । मैंने पूछा हे विषधारी विस्तार से बताइए मैं निरा अज्ञानी समझा नही आपकी बात को । शिव  बोले - मेरी बात छोड़ श्रीहरी ने तीन अवतार लेकर सुखी रहने का तरीका बताया तुम मानवों को पर तुम मानव हर बार भूल जाते हो । मैंने पूछा - नीलकंठ कौन से तीन अवतार ? शिव  बोले - प्रथम रामावतार में भगवान् राम ने जंगल में भी खुश रहकर दिखाया । ऊचे घोर मंदर में रहन वारे, ऊँचे घोर मंदर में रहाते है ।। उन्होंने स्वयम संतुष्ट जीवन कैसे बिताया जाता है तुम सब को बताया । फिर भी न समझ आया । फिर.... उन्होंने सोचा अब बोलकर बता दे इन्हें की सुख की प्राप्ति कर्म करके अकर्मक बने रहने पर होती है इसलिए कृष्णावतार लिया और गीता में कहा "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन&quo

पत्नी

Image
एक लडकी सारे रिश्ते नाते पीछे छोड़ नये अरमानो के साथ सब कुछ छोड़कर एक नये परिवेश में प्रवेश करती है । जहां के बारे में उसे कुछ नही पता होता है । वो अपनी सारी अल्हड़ता मस्ती बचपन सब कुछ छोड़ धीरता की साड़ी और गम्भीरता के गहनों में प्रवेश करती है नये वातावरण में और आटे की लोई की तरह ढाल लेती है खुद को नये वातावरण में जैसे शुरू से यही रही है । उसकी सुबह की दिनचर्या पति और पति के घर से शुरू होती ह ै रात के सोने तक वो माता , मंत्री,परिचारिका और प्रेमिका का कर्तव्य निभाती है । फिर नये दिन पर नये सपने के साथ जगती है । सोचिये जिसने आपके और आपके परिवार के लिए सबसे प्यारी चीज स्वतन्त्रता को तिलांजली दे देती है उसे आप कहते है तुम दिन भर घर में ही तो बैठी रहती हो ये शब्द कैसे सहती होगी ? जब आपको पता भी नही होता की मैं आज ऑफिस जाऊंगा या नही तब वो पूरी तैयारी रखती है आप खायेंगे क्या पहनेंगे ऑफिस के लिए आपके बनियान से लेकर मोज़े और शर्ट की एक एक बटन तक का ख्याल रखती है फिर एकाएक आप कह देते है मैं कमाकर लाता हूँ तुम उड़ा देती हो क्या गुजरती होगी बेचारी पर । जो अपने माता पिता को याद करके रो लेती होगी कोने

पाहन से पावन तक

शांत घाटी क्षेत्र रमणीय स्थल चारो तरफ आनन्द दाई शांति के बीच कलरव करते हुए एक झरने के किनारे दो पत्थर सदियो से पड़े हुए थे । एक दिन दुसरे से पहले वाले पत्थर ने कहा - भाई हम काफी दिनों से यही पड़े हुए है । अच्छा नही लगता हमे कुछ काम करना चाहिए ।  पहले वाले ने कहा - चुप करो, क्या करोगे फालतू में मेहनत करके जब बिना मेहनत के आनन्द आ रहा है । ऐसे ही पड़े पड़े कुछ दिन और बीत गए । फिर वही बात दोहराई दुसरे पत्थर ने । वही जवाब मिला पहले पत्थर से । आखिर सुनते सुनते पहला पत ्थर आजिज आ गया बोला- तुम्हे जाना हो तो जाओ मुझे बहुत आनंद है । यह सुनते ही दुसरे ने झरने में छलांग लगा दी और थपेड़ो को खाता हुआ चल पड़ा । रास्ते में मिले पत्थरो से टकराता चोट लगती पर किसी न किसी तरफ की विकृति दूर हो जाती । इसी तरह चोट खाते रगड़ खाते आगे बढ़ चला और उसके फलस्वरूप वो सुडौल और सुंदर होता चला गया । झरना नदी में तब्दील हो गया और पत्थर मैदानी भाग में पहुच गया । एक दिन स्नान करने गए एक पण्डित जी की नजर पड़ी । अरे इतना सुंदर शिवलिंग - देखते ही बरबस पण्डित जी के मुँह से निकल पड़ा । पण्डित जी ने प्रणाम किया शिवलिंग को और अपने घर

दहेज़

एक लड़की की विदाई हो रही थी वो बहुत रो रही थी । मैं यही सोच रहा था आखिर अब के जमाने में इतना रोना क्यों ? अब तो 3G और 4G का जमाना है अभी ससुराल पहुचते ही या फिर घर पहुचते ही फिर से मम्मी पापा से जुड़ जायेगी । मम्मी पापा से दुरी ज्यादा तो नही हो रही । कही ये यह सोचकर तो नही रो रही की मेरी ख़ुशी के लिए पापा ने सब कुछ न्योछावर कर दिया और सारी कमाई को दहेज़ के दानव के मुह में ठूस दिया । हां शायद यही सोचकर रो रही होगी । पर क्या आपने कभी सोचा की जिस लड़की को और उसके नातेदारों को आप दह ेज़ के नाम पर इतना प्रताड़ित करते है वो आपके साथ जिंदगी कैसे बिताती है ? क्या वो ख़ुशी ख़ुशी आपके साथ रहती है ? या कही उसके मन में आपके प्रति घृणा होती है और उसकी मजबूरी होती है आपके साथ जीवन बिताना क्यों की उसके कुछ करने से उसके पापा की इज्जत पर आंच आएगी । और घरो के टूटने की एक बड़ी वजह ये भी है । विचार कीजिये इस दानव को कब मार रहे है आप ? कन्या भ्रूण हत्या कम हुई सती प्रथा समाप्त हो गयी पर ये दहेज़ प्रथा दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ती जा रही है । समाज को स्थिर करने के लिए इसे खत्म करना होगा । धन्यवाद ।

पार्थ की चिंता

आज पार्थ क्यों असहाय सा है ? क्यों पड़ा निरुपाय सा है ? गांडीव से आज कन्धे झुक गए क्यों ? तूणीर की डोरी भार सी क्यों लग रही ? ये कवच तेरा घात सा क्यों कर रहा ? कुण्डलों से रक्त सा कुछ टपक रहा । आज क्यों भला ये व्रती अधीर है ? क्यों तेरा पौरुष आज हो रहा क्षीण है ? तुम अकेले सन्धान से जग जीत सकते थे । पाषाणों के हृदय भी चीर सकते थे । निस्सीम है शक्ति अपरिमित ज्ञान है तेरा । फिर क्यों पड़ा म्लान सा है पार्थ मेरा । फिर क्यों पड़ा म्लान सा है पार्थ मेरा ।।

देवता

देवता कौन है ? निवास कहाँ है इनका ? इनका उत्थान और पतन कैसे होता है ? शब्द "देवता" की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के "दिव्" शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है "प्रकाश" । अर्थात जो अपने कर्मो के प्रकाश से सम्पूर्ण संसार को देदीप्यमान कर दे वही देवता है ।  और देवता जहां रहते है वो स्वमेव स्वर्ग हो जाता है । देवताओ के उत्थान और पतन के बारे में "रामायण" में बाल्मीकि जी लिखते है । मनुष्य से उच्च योनि वाले जीवो का अच्छे कर्मो से उत्थान तो नही परन्तु बुरे कर्मो से पतन अवश्य होता है जबकि मनुष्य से निम्न योनि के जीवो का बुरे कर्मो से पतन नही परन्तु अच्छे कर्मो से उत्थान अवश्य होता है । इसे हम इस प्रकार समझ सकते है कि यही कोई सदाचारी सद्चरित्र व्यक्ति हो अगर वो एक गलती कर दे तो जनमानस उसकी अच्छाइयों को भूल कर उस एक गलती को लेकर दौड़ते है । और यदि कोई बुरा व्यक्ति एक काम अच्छा किया हो लाख का बुरे किये हो लोग उस एक अच्छाई की दुहाई देते है ।। 

हिन्दू धर्म

मेरी अपनी मति जो है उसके अनुसार - हिन्द महासागर के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में अवस्थित भूभाग जिसे भारत कहते है जिसका अरबी रूपांतरण हिंदुस्तान है में "प्राणी मात्र के कल्याण हेतु उपबन्धित कर्तव्यों" को हिन्दू धर्म से संज्ञापित करते है ।

भूकम्प

उठ रहा प्रकम्पन घोर अहा । है जन की दरुणा घोर महा । महि डोल रही कछु बोल रही । रुक जा रुक जा सुन जा सुन जा । क्यों करता दारुण पाप महा ? वन तोड़ रहा गिरि फोर रहा । नदियो -नद को यूँ घेर रहा । है बेला अभी रुक जा रुक जा । प्रकृति से न कर रार यहां । वो है यहां बलवान महा । गर ठानेगा न मानेगा भोग ही सब कुछ जानेगा । दिन दूर नही यह भूल नही तृण सम खुद को मारेगा । तजि नश्वर इस परिपाटी को । धर ध्यान स्वयं की माटी को । कुछ कर ऐसा की बन जाए । इह लोक भी आज संवर जाए ।

हाथी और इंसान

एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया. उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस ब ात का बड़ा अचरज हुआ कि हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!! ये स्पष्ट था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे. उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं ? तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटेपन से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती कि इस बंधन को तोड़ सकें. बार- बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों नहीं तोड़ सकते, और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते.” आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं...!! इन हाथियों की तरह ही हममें से क

महारानी पद्मिनी

Image
1303 ईस्वी था । दिल्ली के तख्त पर क्रूरतम शासको में से एक अपने चाचा जलालुद्दीन ख़िलजी की हत्या करके अलाउद्दीन ख़िलजी तख्तफरोश हुआ था । चित्तौड़गढ़ के राणा थे राणा रतन सिंह उनकी पत्नी जो की सिंहल द्वीप (लंका) के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री थी । उनके रूप के चर्चे पूरे देश में मशहूर थे ।  कामी अलाउद्दीन ने किसी भी प्रकार उन्हें पाने की इच्छा प्रदर्शित की । वजीर ने कहा सामने से लड़कर राजपूताने और चित्तौड़ को जीतना नामुमकिन है ।  फिर क्या था लोमड़ी से चलाक अ लाउद्दीन ने चित्तौड़ के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया । शरणागतवत्सल राजपूत कैसे ठुकरा सकते थे । उसने किला देखने की इच्छा प्रकट की । राणा रतनसिंह ने उसे किला घुमाया और लोक व्यवहार के नाते उसे किले से बाहर छोड़ने आये धोखे से उन्हें बन्दी बनाकर अलाउद्दीन ने महारानी पद्मिनी की मांग की कोई राजपूतानी और भारतीय स्त्री ये कैसे सह सकती थी उन्होंने सेना को आदेश दिया की अलाउद्दीन पर हमला किया जाए । दिल्ली की विशाल सेना के आगे राजपूत खेत रहे । फिर एक अजब निर्णय लिया इस महान महिला ने जिसे सोचते ही शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते है और अदम्य वीरता के बारे में सोचकर छ

बस यु ही

Image
आज फिर कोई झरोखे से झाँक रहा था मुझमे ।  किसी पुरानी तालीम ने झरोखे झट से बन्द कर दिए ये कहकर । तू महफूज रहेगा ।  हमे इल्म न था की जिंदगी के इदारे में कुछ यु भी सबक मिलते है ।  हम जैसे लोग अब फूलो से भी डरते है । हमेशा लड़ते रहे खार से पर क्या मज़ाल सिकन भी आई हो जिस्म पर । एक फूल की सोहबत में हज़ार जख्म खाये । जख्म के मरहम भी थे मिले हुए नाजनीनो से । कुरेदते रहते है लहू की खातिर ।

तलाक़

अरे! काजी साहब कहाँ जा रहे है ? सुनिए जरा । अभी जल्दी में हूँ जरा बाद में मिलते है । - कहते हुए काजी साहब तेजी से कदम बढ़ाते हुए चले जा रहे थे । मैं तब तक उनके पास पहुच गया । क्या बात है काजी साहब बड़ी जल्दी में है आज कही दावत है क्या ? खूब दबाकर खाएंगे । लाहौल बिला क़ूवत आप तो हमेशा मज़ाक उड़ाते रहते है । दावत के सिवा भी और भी सिलसिले है । - क़ाजी साहब बिदकते हुए बोले । मैंने कहा - क्या बात है तनिक बताते तो जाइये इतनी जल्दी कहाँ जाने की पड़ी है ? काजी साहब बोले- अरे वो फखरुद्दीन का बेटा सलीम है न ! उसी के घर जाना है । मैंने पूछा क्या हुआ ? काजी साहब बोले - अरे उसने अपनी बीबी से "ज़िहार तलाक़" ले लिया पर वो मान ही नही रहा है । मैंने कहा ये क्या होता है ? क़ाज़ी साहब बोले - अरे दोनों लड़ रहे थे आपस में सलीम ने कहा "अब तो चुप हो जा 'मेरी माँ' " । बस हो गया ये तलाक़ । मैंने कहा ये क्या बात हुई ? ये तो कोई भी कह देता है । क़ाजी साहब भड़क गए बोले - ऐसे कैसे कोई कह देगा कोई अपनी बीबी की तुलना किसी दूसरी औरत से कैसे कर सकता है जिससे उसकी शादी नही हो सकती है । कोई माँ से शादी कर

समान नागरिक संहिता

सिंह साहब ! अरे सिंह साहब !! मैंने पलटकर आवाज की तरफ देखा तो मेरी पीछे वाली सीट पर क़ाजी साहब बैठे हुए थे ।  मेरे देखते ही तपाक से बोले - मुआफ़ी चाहता हूँ सिंह साहब आपसे मिलने का वक्त मयस्सर नही हो पाया । आप कह रहे थे आपको हमसे कोई ख़ास तक़रीर करनी थी । मैंने कहा - हां कुछ बात तो थी पर घर पर मिलिए तब बात होगी उसकी । और बताइये क्या हाल चाल है ? - मैंने पूछा क़ाजी साहब बोले - क्या बताऊ अब सुन रहा हूँ कोर्ट समान नागरिक संहिता की बात कर रहा है । ये तो हमारे धर्म पर सीधा हमला है हम अल्पसंख्यको के साथ ये अन्याय है ये तो । आखिर आपको तक़लीफ़ क्या है इससे ? वैसे भी IPC CrPC CPC TPA वगैरह तो उसी तरह लागू होते है फिर क्यों विरोध कर रहे है ? - मैंने तल्ख लहजे में पूछा । क़ाजी साहब बोले - अरे साहब आप समझ नही रहे है । समान नागरिक संहिता लागू हो गयी तो हमारे यहाँ भी हम लोग एक से ज्यादा शादियां नही कर पाएंगे । बीबियो को इद्दत के बाद भी दूसरी शादी तक भरण पोषण देना पड़ेगा जो की हम लोगो ने इतनी मेहनत की 1986 में रोक लगवायी थी । मुता निकाह नही हो पायेगा शिया लोगो में । तलाक़ के हमारे आठो तरीके अमान्य हो जायेगा कोर

तल्ख लिखूंगा

Image
चल मानता हूँ लिखता हूँ तल्ख अक्सर । मज़ाक भी बनाता हूँ तेरी बातो का । नही करता पैरोकारी तेरे हुनर की  पर गलत को गलत न कहू कैसे ? हर दोष पर आँखे मूद लू कैसे ?  सुन मतलब नही मुझे तेरे सम्मान से । मादरे वतन पर आच आई तो फिर बोलूँगा । हर शब्द से फिर तेरे कारनामो को तोलूँगा । तेरा कोई मुरीद नही मैं शहंशाह हूँ शब्दों का । कागजो पर बिखेर कर जीत लेता हूँ । इसी का शर इसी का चाप है मेरा । कलम की तेग के आगे साबुत धड़ कहाँ तेरा । हाँ और तल्ख लिखूंगा अभी भी आग लिखूंगा । अपने हर लफ्ज में तुझे गद्दार लिखूंगा ।

हिंदुत्व

हिंदुत्व क्या है ??? मैंने काफी सोचा विचारा कई दिनों के मंथन के बाद मैं इस परिभाषा पर पहुचा हूँ कृपया इसे परिष्कृत करने में मेरी सहायता करें ।। हिंदुत्व मात्र पूजा पद्धति न होकर एक जीवन दर्शन है । जिसमे मूर्तिपूजा के निम्नतम विचार से लेकर पारब्रह्म निराकार की पूजा के श्रेष्ठतम विचार समाहित हैं । जिसमे कपिल मुनि के सांख्य दर्शन जो दर्शन की प्रारम्भिक अवस्था थी से लेकर चार्वाक के भौतिकवादी दर्शन और गीता जैसे सभी दर्शनों का आश्रय भी समाहित है । हिंदुत्व उस प्रकाश स्तम्भ जैसा है जिसने दुनिया की हर बर्बर सभ्यता चाहे वो हूण रहे हो या कुषाण या फिर युची सबको अपने में समाहित करके सभ्य बना दिया ।

शब्दों का युद्ध ||

शब्दों से शब्द यु उलझ गये शब्दों के शातिर शब्द चले । शब्दों की आपाधापी में सब शूर वीरता संग चले ।। शब्दों की इन रणभेरी में शब्द शब्द पर टूट पड़े । शब्दों की ढाल तलवार शब्द थे शब्दों के खंजर तेग चले ।। शब्दों के बाण सरासन थे शब्दों के संग ही रेल चले । शब्दों के इस महासमर में कुछ लड़ते कुछ मुह फेर चले । तोड़ी मर्यादा थी कुछ ने कुछ बंध मर्यादा से घोर चले । शब्दों के इस महासमर शब्दों के शब्द चहु और चले ।।

एक योद्धा |

लो खड़ा हूँ फिर लडूंगा,  है धरा पर त्राण जब तक और तन में प्राण जब तक । करता रहूँगा परित्राण तब तक साधुता का । हा गिर पड़ा था चंद पल को , पर न थका था न थकुंगा । अंत साँसों तक लडूंगा । न झुक था था न झुकूँगा , आज मैं फिर से लडूंगा । आततायी है सबल धरा हो रही विकल , पर न हटूंगा लड़ मरूँगा , लो खड़ा हु फिर लडूंगा । है शपथ उन राम की धर परशु फिर से भिडूगा , आह्वान है शर चाप का, दिव्य अग्नि ताप का, न हटा था न हटूंगा । लो खड़ा हूँ फिर से लडूंगा । हर मनुज का का रूप ले , दनुजो का संहार को आज फिर रण में चलूँगा । लो खड़ा हूँ फिर लडूंगा । परवाह नही है घाव की , शोणित के अपवाह की , आज शर संधान करूंगा । लो खड़ा हूँ फिर से लडूंगा । अन्याय है जब तक धरा पर , न्याय को लेकर चलूँगा , दनुजता की हर बला को आज भस्मीभू करूंगा । लो खड़ा हूँ फिर लडूंगा । लो खड़ा हूँ फिर लडूंगा ।

भारत में लोकतंत्र का विकास

भारत में लोकतंत्र का विकास अमूमन ज्यादातर विद्वान लोकतंत्र को पश्चिम की उपज मानते है खासकर ब्रिटिश परम्परा को इसकी जननी मानते है | ज्यादातर विद्वान अंग्रेजो की इस मदमत्त विचारधरा से सहमत दिखते है की “ईश्वर ने भारत को सभी बनाने के लिए उन्हें भारत का राज्य सौपा |”  वर्तमान लोकतान्त्रिक  परम्परा का अध्ययन करने पर हमे पूरी दुनिया में यही निष्कर्षतः स्वरूप पारपत होता है की प्रत्येक लोकतान्त्रिक राष्ट्र चाहे वो ब्रिटेन हो या फिर संयुक्त राज्य अमेरिका चाहे फिर कनाडा हो या आस्ट्रेलिया सब के पास द्विसदनात्मक केन्द्रीय विधानमंडल और उसके द्वारा अनुमोदित अधिनियमों को अंतिम स्वीकृति देने के लिए राष्ट्रपति या राजा जैसी शक्ति मौजूद है | ब्रिटिश परम्परा में इसके पास न्यायिक और सैनिक शक्तियां भी मौजूद है | विश्व के सारे संविधान उस देश की जनता द्वारा ही अधिनियमित, अंगीकृत और आत्मार्पित है अर्थात अपौरुषेय है किसी एक व्यक्ति द्वारा रचित नही है न ही किसी एक सम्प्रभु व्यक्ति का समादेश है | इस प्रकार से उक्त विवेचना के फलस्वरूप वर्तमान लोकतान्त्रिक  प्रणाली के मुख्य अवयव के रूप में हम कुछ तत्व पाते ह