सुख की खोज
मैंने सोशल मीडिया में एक post देखी जिसमे सुख के खोज की बात कही थी एक प्यारी सी कविता में । मैं यही प्रश्न लेकर पहुच गया शिव के पास की आखिर सुख को खोजने कहाँ जाऊं कहा मिलेगा सुख अमीर दुखी है कही गरीब खुश है क्या विडम्बना है ये सब कैसी सृष्टि है आपकी । शिव बोले - देख हिमांशु तुम मानव क्यों सब कुछ भूलकर बस अत्यधिक लाभ की अनाशक्ति के पीछे भागते हो । मैंने पूछा हे विषधारी विस्तार से बताइए मैं निरा अज्ञानी समझा नही आपकी बात को । शिव बोले - मेरी बात छोड़ श्रीहरी ने तीन अवतार लेकर सुखी रहने का तरीका बताया तुम मानवों को पर तुम मानव हर बार भूल जाते हो । मैंने पूछा - नीलकंठ कौन से तीन अवतार ? शिव बोले - प्रथम रामावतार में भगवान् राम ने जंगल में भी खुश रहकर दिखाया । ऊचे घोर मंदर में रहन वारे, ऊँचे घोर मंदर में रहाते है ।। उन्होंने स्वयम संतुष्ट जीवन कैसे बिताया जाता है तुम सब को बताया । फिर भी न समझ आया । फिर.... उन्होंने सोचा अब बोलकर बता दे इन्हें की सुख की प्राप्ति कर्म करके अकर्मक बने रहने पर होती है इसलिए कृष्णावतार लिया और गीता में कहा "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन&quo