मुस्लिम वैयक्तिक विधि ( मुस्लिम पर्सनल लॉ)
विवाह ( निक़ाह) ================
जस्टिस वली कहते
हैं कि मुस्लिम विधि में निक़ाह कोई कोई संस्कार नहीं है बल्कि एक संविदा (समझौता)
है जिसमें दोनों पक्षो के कुछ अधिकार व दायित्व उत्पन्न हो जाते है ।
फैजी के अनुसार
जैसे विक्रय की संविदा में होती है वैसे ही निक़ाह में भी "एजाब"
(प्रस्ताव) और "कुबूल" (स्वीकृति) होती है और मेहर का आदान प्रदान
उसमें प्रतिफल (मूल्य) होता है ।
मुस्लिम विवाह के
लिए आवश्यक है कि दोनों पक्षों ने "ख़यार-उल-बुलूग"(यौनागम) की
अवस्था प्राप्त कर ली हो जो कि मुस्लिम विधि के अनुसार 15 वर्ष है ।
दूसरी शर्त है वे
सम्बन्ध "करावल" (रक्त सम्बन्धी) , "मसारफ" (विवाह सम्बन्धी) तथा
"रिजा" (धात्रेय या दुग्ध सम्बन्धी) न हों ।
तीसरी शर्त है
जिस महिला से विवाह होगा वो या तो इस्लाम को मानने वाली हो अथवा किसी अन्य
"किताबी मजहब" को अर्थात वो अग्निपूजक या बुतपरस्त न हो ।
चौथी शर्त है 2 पुरुष और स्त्री गवाह और वे मुसलमान हों
किन्तु किसी गैर मुस्लिम के साथ यदि विवाह हो रहा हो तो एक गवाह गैर मुस्लिम भी हो
सकता है ।
निक़ाह इन नियमों
के पालन करने या न करने के आधार पर 3 तरह के होते हैं
पहला "सहीह
निक़ाह" जिसमें इन सभी नियमों का पालन किया जाता है ठीक से
दूसरा "बातिल
निक़ाह" जो कि करावल में किये जाते हैं ये कभी मान्य नहीं हो सकते है ये
शून्य होते है ।
तीसरा होता है "फ़ासिद
निक़ाह " जो कि ख़यार उल बुलूग , मसारक या रिजा के उल्लंघन में किया जाता है इसे कुछ उपायों द्वारा वैलिड किया
जा सकता है । जैसे यदि उम्र 15 साल से कम है तो
संरक्षक की सहमति से, अगर दो सगी बहनों
से या पत्नी के किसी रिश्तेदार से शादी कर ली है तो पत्नी को तलाक़ देकर , अगर 5 शादी कर ली तो एक को तलाक देकर आदि तरीके हैं इसे वैध बनाने के ।
विवाह की एक
पद्धति जो मात्र "शिया समुदाय के फ़िकरो" में प्रचलित है उसे कहते है "मुता
निक़ाह" जिसे हिंदी में अगर कहा जाए तो "आनन्द विवाह" । इसमें
किसी महिला के साथ कुछ पल से लेकर कुछ घण्टो , कुछ दिन,सप्ताह, माह या वर्ष के लिए होता है । इस विवाह में
मेहर तय करना आवश्यक होता है और इसपर वो " 4 निक़ाह वाला प्रतिबन्ध लागू नहीं होता " । ये पुरुष चाहे जितना कर सकता है परंतु एक
स्त्री एक बार से ज्यादा मुता निक़ाह नहीं कर सकती है ।
तलाक़================
मुहम्मद साहब के अनुसार , "अल्लाह ने जितनी चीजों की स्वीकृति दी है उसमें
से अगर सबसे घृणित कोई वस्तु है तो वह है तलाक़।"
मुस्लिम शरिया
कानून में तलाक के सात तरीके हैं -
1-
तलाक़-ए- सुन्नत - यह तलाक़ दो तरह का होता है
1A - अहसन - इसमें पति
पत्नी के तुहरकाल (रजनोवृत्ति) के समय जिसमें समागम न हुआ हो एक बार तलाक़ कहता है
तथा दूसरे तुहरकाल तक का इंतज़ार करता है यदि इस प्रकार तीन माह तक करता है तो वो
तलाक़ पूर्ण हो जाता है किन्तु इस दौरान यदि एक बार भी समागम हो जाये तो तलाक़ अवैध
हो जाता है ।
1B- हसन - यदि एक तुहरकाल में एक बार तलाक़
बोला जाए और फिर उसे रद्द किया जाए समागम करके फिर से दूसरे तुहरकाल में तलाक दिया
जाए और उसे फिर रद्द किया जाए यही प्रक्रिया 3 बार अपनाई जाए तो तलाक़ प्रभावी हो जाता है ।
2- तलाक़-ए- इद्दत - यह सबसे कुख्यात और निंदित रूप है तलाक़ का
इसमें पति पत्नी को कभी भी तीन बार तलाक़ बोलकर या एक बार में ऐसा बोलकर की
"मैं तुम्हे तीनबार तलाक़ देता हूँ" तो दोनों में सम्बन्ध विच्छेद हो
जाता है ।
3- इला - इसमें पति अपनी पत्नी से कहता है "मैं
खुदा की कसम खाता हूं तुमसे 4 माहीने तक समागम
नहीं करूँगा या तुझे नहीं छूएंगे अथवा मैं तेरे साथ नहीं सोऊंगा ।" और चार
माह तक वो ये शपथ पूरा कर लेता है तो यह तलाक़ प्रभावी हो जाता है ।
4- जिहार - जिहार का अर्थ होता है "निषिद्ध तुलना
करना" अर्थात पति जब पत्नी की तुलना किसी ऐसी स्त्री से करता है जो उसकी
"करावल" सम्बन्धी है । जैसे कोई पति भूल से भी अपनी माता और पत्नी की
तुलना कर देता है तो वो उसके लिए हराम हो जाती है और तलाक हो जाता है । इसके बाद
कोई हलाला भी पुनः निक़ाह नहीं करवा सकता ।
5- तफ़वीज - ये तलाक़ की प्रत्यायोजित विधि है । अर्थात
इसमें यदि पति को किसी से "उधार " पैसे लेना है और उसके पास गिरवी रखने
को कुछ नहीं है तो वो अपनी पत्नी को तलाक देने की शक्ति उसे प्रत्यायोजित कर सकता
है अर्थात वो ऋण देने वाला यदि उसकी पत्नी को तलाक दे दे तो उसे अपनी पत्नी को
छोड़ना होगा ।
6- खुला - इस प्रकार के तलाक में पत्नी यदि अपनी संपत्ति
में से पति जितना मांगे उतना मुआवजा उसे दे दे तो बदले में पति उसे अपने निक़ाह
बन्धन से मुक्त कर देता है ।
7- मुबारत - इस
प्रकार के तलाक में पति ने जितना खर्चा पत्नी पर किया है यदि पत्नी उसे चुका दे और
पति स्वीकार कर ले तो सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है ।
तलाक़ के बाद यदि
पति पत्नी पुनः विवाह करना चाहे तो और वो "जिहार" के अतिरिक्त कोई अन्य 6
प्रकार के तलाक हो तो पहले पत्नी को 3 मास की इद्दत पूरी करने के बाद किसी अन्य
व्यक्ति से विधिपूर्ण निक़ाह करना होता है और उसके तलाक़ देने के पश्चात पुनः इद्दत
पूरी करनी होती है तब कहीं जाकर अपने पति से पुनः विवाह कर सकती है ।
भरण पोषण
================
हिदाया 145 के अनुसार
"प्रत्येक मुस्लिम महिला तलाक़ के बाद इद्दत की अवधि तक भरण पोषण की
अधिकारी है । "
किन्तु शाहबानो
(1985) के केस में
न्यायाधीश श्री चंद्रचूड़ ने क़ुरान की आयत 241 और 242 की विवेचना करते हुए कहा कि तलाकशुदा पत्नी को दूसरा विवाह
कर लेने तक अथवा अपना भरण पोषण करने में समर्थ होने तक अपने शौहर से भरण पोषण
प्राप्त करने की अधिकारी है । किंतु इन निर्णय ने तो भूचाल ही ला दिया भारतीय
राजनीति में |
"मुस्लिम पर्सनल
लॉ बोर्ड ने कहा कि क़ुरान की यह हिदायत केवल पवित्र और ईश्वर परायण लोगों के लिए
है आम आदमी के लिए नहीं अतः इद्दत काल खत्म होने के बाद भरण पोषण देने वाला
व्यक्ति काफ़िर है ।"
इसके बाद तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने एक विधेयक पास किया
जिसका नाम था "मुस्लिम महिला (विवाह विच्छेद पर उसके अधिकारों का संरक्षण)
विधेयक 1986 ,जिसके अनुसार
पत्नी को इद्दत काल तक |
पति से भरण पोषण
पाने का अधिकार है उसके बाद यदि वो असमर्थ रहती है प्राप्त करने में तो वह अपने
"वयस्क बच्चों" से प्राप्त करे ;
यदि वे भरण पोषण
देने में असमर्थ हैं तो वह महिला अपने माता पिता से भरण पोषण प्राप्त करे;
यदि माता पिता
इसमें असमर्थः है तो वह रिश्तेदारों से
भरण पोषण प्राप्त करे ;
यदि रिश्तेदार
असमर्थ हैं तो उसे "वफ्फ बोर्ड" भरण पोषण देगा ;
यदि वफ्फ बोर्ड
के पास पर्याप्त धन नहीं है तो राज्य सरकार उस महिला के भरण पोषण के लिए धन देगी ।
अब साहब ये
प्रक्रिया इतनी लंबी और थकाऊ है कि महिला बूढ़ी हो जाती है पर उसे भरण पोषण मिलना
आसान नहीं होता है ।
उसमें दिखावे के
लिए एक धारा 5 जोड़ी गयी है जो
कहती है कि,
"मुस्लिम महिला को
भी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता प्राप्त होगा, यदि दोनों पति पत्नी इस अधिनियम के अंतर्गत दिए
गए शपथपत्र के अनुसार इस सुनवाई के लिए राजी हो जाएंगे" ।
अब साहब "न
नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी" । किस मरदूद को कुत्ते ने काटा है जो पति
इस शपथपत्र पर दस्तखत करके धारा 125 से प्रावधान के
अंतर्गत भरण पोषण देने को राजी होगा ? जान बूझकर वो थोड़े न कहेगा "आ बैल मुझे मार " ।।
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