महिलाओ के प्रति बढ़ते अपराध : बदलते मानवीय तथा नैतिक मूल्य ===============



भारत के केन्द्रीय गृह मंत्रालय के संस्थान नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा ११ नवम्बर २०१६ को वर्ष २०१५ की क्राइम रिपोर्ट के आंकड़े जरी किये गये जिसमें महिलाओ के विरुद्ध अपराधो के कुल ३,२७,३९४ मामले भारतीय दंड संहिता और अन्य राज्य स्तरीय कानूनों के अंतर्गत दर्ज किये गये | जैसा कि इस पुस्तिका के आंकड़े बताते हैं कि इनमें स्व ४४३७ मामले तो बलात्संग के है | आगे इन आंकड़ो में प्रदर्शित है कि वर्ष २०१५ में भारत में दर्ज किये गये कुल अपराधों में महिलाओ के प्रति अपराध का प्रतिशत ५३.९% है तथा ८९.४ % मामलों में चार्जशीट भी दाखिल कि गयी है अर्थात ये मामले प्रथम दृष्टया सही पाए गये है | यही नहीं पिछले दस सालों में यानि वर्ष २००५ के मुकाबले इन अपराधों कि संख्या ८८.७% अधिक है तथा वर्ष २०१४ के मुकाबले २२.७% अधिक है |
        आखिर इस भयानक तस्वीर के कारण क्या हैं ? क्या गरीबी ? अरे नहीं –नही हम तो लगातार ७.२% कि विकासदर से आगे बढ़ रहे है ये कैसे हो सकता है ? तो फिर क्या अशिक्षा इसका कारण है ? शायद हो सकता था किन्तु हमारी साक्षरता दर तो लगातार बढ़ ही रही है हम और ज्यादा आधुनिक तथा साधन और सुविधा सम्पन्न होते जा रहे हैं |आखिर स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत धडाधड एक के बाद एक राज्य खुले में शौच मुक्त ( ODF) घोषित हुए जा रहे हैं | रोज ब रोज कठोर से कठोर कानून बनते जा रहे हैं | अकेले भारतीय दंड संहिता ( IPC) में ही दंड विधि (संशोधन) अधिनियम २०१३ द्वारा कम से कम १०-१२ धाराएँ महिला सुरक्षा हेतु नई जोड़ी गयी तथा कई धाराओं कि भाषा में परिवर्तन करके उन्हें और कठोर बनाया गया | १९९७ में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा ”विशाखा बनाम राजस्थान राज्य“ के वाद में दिए गये निर्णय के अधीन बनी गॉइडलाइन्स को २०१३ में एक नया विधेयक बनाकर पेश किया गया | महिलाएं भी लगातार सशक्त होती जा रही हैं हर क्षेत्र चाहे वो खेल हो अथवा व्यवसाय , राजनीति या प्रशासन चाहे विज्ञानं हर जगह अपनी सफलता के झंडे गाद रही हैं | आज शासन प्रशासन प्रत्येक स्थान पर महिलाओ का समुचित न कहें तो भी प्रतिनिधित्व है और लगातार बढ़ता ही जा रहा है | देश कि सबसे बड़ी पंचायत कि बागडोर हो अथवा देश के दो सबसे बड़े बैंकों SBI और आईसीआईसीआई कि बागडोर आज महिलाओ के हाथ में ही है |  
        फिर भी “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” जिस देश कि संस्कृति का ध्येय वाक्य था वहां पर महिलाओ के प्रति अपराधों कि ऐसी भयावह स्थिति है | फिर आकर यह सवाल जस का तस वहीँ अटकता है कि इसका कारन क्या है आखिर ?
        इसका कारण है शायद हमारे “नैतिक और मानवीय मूल्यों का पतन” | शायद हमारे नैतिक पतन का ही कारण है कि कोई भी कंपनी अपने उत्पादों को बेंचने के लिए महिलाओ का अनावश्यक प्रदर्शन करती है | मेरी समझ में आज तक यह बात नहीं आई आखिर सेप्टिक रेजर से पुरुष क्या दाढ़ी महज इसलिए बनता है कि महिलाएं उसकी तरफ आकर्षित हों यदि महिलाओं के आकर्षित होने  कि बात न होती तो क्या पुरुष खुरपे या फावड़े से दाढ़ी बनता ? पर प्रचारक को मालूम है कि लोग उसके रेजर के लिए वो प्रचार देखें या न देखें पर उस महिला को देखने के लिए उसका प्रचार देखेंगे और उत्पाद के विषय में जानकारी हासिल करेंगे | तमाम चुनाव प्रचारों में नेता लोग नाचने वाली महिलाओ को अथवा अभिनेत्रियों को बुलाते है क्युकी उन्हें देखने भले न कोई आये पर “उनको” देखने जरूर लोग आएंगे | लोक संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम पर भौड़ा नृत्य और गायन आदि हमारे नैतिक चरित्र के पतन कि तरफ इंगित करता है | रामचरितमानस के उत्तरकांड में तुलसीदास जी ने हमारे चारित्रिक मूल्यों के पतन के बारे में लिख है कि
               घर ने निकारहि नारि सती , गृह लावहिं चेरि निबेरि गती |
    मानवीय मूल्यों की  बात ही मत कीजिये कि वे कहाँ तक गिर गयें है | बलात्कार पीडिता निर्भया सडक पर पड़ी तडपती है कोई सहायता के लिए आगे नहीं आता है | लखनऊ के मोहनलालगंज में एक प्राइमरी स्कूल में एक महिला का नग्न शव प्राप्त होता है उसपर कोई वस्त्र डालने के बजाय भीड़ के लोग अपने फ़ोन के कैमरे से उसकी तस्वीर ले रहे होते हैं | सब छोडिये मानवीय मूल्यों का स्तर इतना नीचे गिर गया है कि लोगों ने ४, ६, १० साल कि बच्चियों को भी नहीं बख्सा |
     ये सब होने के बाद हम बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेकर मोमबत्ती सडकों पर खड़े हो जाते हैं सरकार से उसे फांसी दिए जाने कि मांग करते हैं और फिर उन्ही मोमबत्ती उठाये हाथों में से किसी हाथ को मौका मिलता है तो एक नईं निर्भया , लक्ष्मी और गुडिया खड़ी कर देते हैं अख़बारों में उनके खिलाफ फिर से मोमबत्तियां उठाते हैं लोग पर नतीजा क्या होता है अपराध २२.७% कि दर से बढ़ते जा रहे हैं |
      बेहतर होगा हम अपना तथा अपनों के नैतिक और मानवीय मूल्यों को उठाने का प्रयास करें, अंधी भौतिकवादी जीवन कि दौड़ में हम जिन मानवीय और नैतिक मूल्यों को हम भूल चुके हैं आवश्यक हैं कि फिर से उन्हें जगाएं नहीं तो दंड से आजतक कोई अपराध समाप्त नहीं हुआ है | क्योकि दंड अपराध हो जाने के बाद अपना कार्य करता है किन्तु नैतिक और मानवीय मूल्य अपराध होने से रोकते हैं |

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