परी ( जागरण की अग्रदूत )


अरे सृष्टि ! इन्हें ले जाइये आश्रम के अतिथिगृह में इनको कमरे में पहुचा दीजिये – एक स्निग्ध और अपने तेज से वातावरण को देदीप्यमान करने वाली लडकी ने एक महिला की तरफ इशारा करते हुए कहा |
जी दीदी - सृष्टि बोली और उन महिला को लेकर अन्दर जाने लगी |
अरे शिव जी कहा है ? – आगे वो लड़की बोली |
सृष्टि ने कहा – स्टडी में है |
असल में ये एक लडकी है जो समाज को समर्पित और पेशे से अधिवक्ता तथा शिव के “आदर्श भारत” आश्रम की संचालिका |नाम है परी |
गुड इवनिंग शिव जी – स्टडी में  आई |
शिव जी आज एक सवाल कौध ले दिमाग में ये दहेज़ की उत्पत्ति कहाँ से है? कारण क्या है इस भयावह बीमारी का |
शिव – ओह ! इतन बड़ा सवाल ? तो सु रहा है मेरेघुसते हुए परी बोली |
गुड इवनिंग परी, कैसी है ? कैसा रहा  आज का दिन ?- शिव ने परी की तरफ मुखातिब होए हुए पूछा |
परी- क्या बताऊं आज जब मैं आश्रम के लिए आ रही थी तो मैंने एक महिला की चीख सुनी मैंने देखा घर के कुछ सदस्य एक महिला को प्रताड़ित कर रहे थे | उसे बचने के लिए गयी और पूछने पर उस महिला ने बताया की विवाह में दहेज़ कम मिला था | दहेज़ से परिवार वाले खुश नहीं है और मांग कर रहे है जबकि मम्मी पापा और देने की स्थिति में नही है | तो उन्हें अपने साथ आश्रमनिए | हमारी भारतीय संस्कृति में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख मिलता है | जिसमे से “आर्ष विवाह” सर्वश्रेष्ठ विवाहों में से एक है | जिसमे “ पिता अपनी वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कन्या का यथाशक्ति दान के साथ सुयोग्य वर के साथ विवाह करता था |”
दहेज़ के कांसेप्ट का जन्म होता है स्त्रीधन से जो प्रत्येक पुत्री का अपने पिता की पैत्रिक संपत्ति में हिस्सा होता है उसे पुत्री को विवाह के समय पिता दहेज़ के रूप में दान कर देता था | परन्तु धीरे धीरे दहेज़ प्रथा नीलामी प्रथा में बदलने लगी आज वर की बोली लगती है और सबसे ऊँची बोली लगाने वाले की बेटी के साथ लडके की शादी की जाती है |
परी – क्या इसका कोई इलाज नही है ?
शिव- इलाज तो है आपके पास कानून में है लोगो के मानसिक सुधार में है |
परी – अरे हाँ “दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम १९६१” की ‘धारा २’ में इसे परिभाषित किया गया है ‘धारा३’ में दहेज़ लेने और देने वालो के लिए कम से कम पञ्च वर्ष का कारावास तथा जुर्माना के दंड का प्रावधान है और ‘धारा ४’ के अनुसार मांगने वाले को छः माह से लेकर दो वर्ष तक कारावास तथा जुर्माना का दंड निर्धारित है |
पर शिव क्या विवाह में लिया या दिया  गया हर उपहार दहेज़ होगा ? अगर ऐसा हुआ तो गलत है आखिर ख़ुशी के मौके पर स्वैच्छिक उपहारों के लिए स्थान होना चाहिए न ?
शिव- नही, विवाह का प्रत्येक उपहार दहेज़ नही होता है | “दहेज़ प्रतिषेध(वर-वधू भेंट सूची) अधिनियम १९८५” की ‘धारा२’ कहती है प्रत्येक उपहार दहेज़ नही है किन्तु वर और वधू को प्राप्त उपहारो की सूची अलग अलग बनाकर उसपर हस्ताक्षर करने चाहिए |
परी – हाँ ये सही है | पर जो लोग दहेज़ के लिए क्रूरता करते है उनके लिए तो दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम तो कुछ कहता ही नही बिलकुल चुप है |
शिव- अरे परी जी उसके लिए “भारतीय दंड संहिता १८६०” में वर्ष १८८३ में संशोधन करके नया अध्याय २०क जोड़ा गया जिसके अंतर्गत धारा ४९८(क) जोड़ी गयी जो ऐसी किसी भी प्रकार की क्रूरता करने वालो को ३ वर्ष के कारावास का प्रावधान करती है तथा “हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५” की ‘धारा १३[१(क)] के अनुसार विवाह विच्छेद का आधार भी है | कितनी भुलक्कड वकील है आप ?
परी- पता तो है पर आपसे पूछने पर इतिहास भी पता चल जाता है न |
शिव- अरे वाह ! और कुछ पूछना है ?
परी- एक सवाल और है | अगर क्रूरता होती है और महिला घर छोड़ देती है तो अदालत के फैसले तक वो क्या करे कहाँ रहे उसका भरन पोषण कैसे हो ?
शिव- हाँ ये सवाल बड़ा इसके लिए “दहेज़ पीडिता महिलाओको आर्थिक सहायता नियमावली १९९०” बनाई गयी है जिसकी “धारा ८” के अनुसार एक जिलाधिकारी की अध्यक्षता में सात सदस्सीय कमेटी कितनी आर्थिक मदद दी जाए इसका निर्धारण करेगी | और कुछ ?
परी- धन्यवाद शिव | बस सभी समस्याओ का समाधान हो गया अब इन्हें न्याय अवश्य मिलेगा |
शिव- पर ध्यान रखियेगा आपके सामने तृष्णा कड़ी होगी विश्वजीत की |
परी(हँसते हुए)- खड़े होने दीजिये जब तक आपका और “आदर्श भारत” का साथ तब तक परी अजेय है |

शिव- गुड; अब सो जाइये, शुभरात्रि ||

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