विज्ञान और धर्म

Science And Religion
"(विज्ञान और धर्म)"

जैसा कि सर्वविदित है कि प्रत्येक सभ्यता में अनेक कारक होते हैं जो मानव के जीवन को प्रभावित करते हैं उनमें विज्ञान और धर्म भी समाहित हैं ।

विज्ञान शब्द का अर्थ होता है "विशिष्ट ज्ञान" तथा अंग्रेजी के शब्द रिलिजन की उत्पत्ति हुई है पुर्तगीज भाषा के शब्द "religare" से जिसका अर्थ होता है बंधना अर्थात मनुष्य को ईश्वर से बांधना । वास्तव में रिलिजन शब्द संस्कृत शब्द "धर्म" का अंग्रेजी अनुवाद है , महाभारत के कर्ण पर्व के अनुसार धर्म का अर्थ होता है "प्राणी मात्र के कल्याण के लिए धारणीय कर्तव्यों का समुच्चय" । अर्थात धर्म प्राणियों के कल्याण की एक अवधारणा का नाम है ।

अरुणा राय बनाम भारत संघ के वाद में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने धर्म को परिभाषित करते हुए धारित किया कि "धर्म जीवन जीने की पद्धति का नाम है  ।"

यदि हम विश्व पटल पर देखें तो विज्ञान और धर्म के सम्बन्धों को स्पष्ट करने के दो परिदृश्य सामने आते हैं।  प्रथम है यूरोपियन परिदृश्य तथा द्वितीय है भारतीय परिदृश्य ।

यूरोपियन परिदृश्य में धर्म का अर्थ आता है सिर्फ और सिर्फ ईश्वर की आराधना और अगर ईश्वर की आराधना अथवा किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के लाभ के लिए फैलाये गए अंधविश्वास के आड़े कोई भी बात आती है उसका नाश कर दिया जाना चाहिए । इसी फेर में अनेक वैज्ञानिकों जैसे गैलीलियो गैलिली , कोपरनिकस आदि की हत्या बड़ी नृशंसता से की गई । इन्हीं कारणों से कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफ़ीम कहा ।

द्वितीय परिदृश्य आता है भारतीय परिदृश्य जहां पर विज्ञान और धर्म को सहगामी और पूरक माना गया है । वे मान्यताएं , रूढ़ियाँ तथा प्रथाएं ही मानने पर जोर दिया गया है जो कि तर्कों पर आधारित हैं । भारतीय परिदृश्य में विज्ञान और धर्म के बीच के संघर्ष को चंद शब्दों और एक ही सिद्धांत में समाप्त कर दिया गया और दोनों को सहगामी बना दिया गया ।
भास्कराचार्य ने एक सिद्धांत दिया है "अद्वैतवाद"का जिसके अनुसार प्रत्येक वस्तु के निर्माण के दो कारक होते हैं प्रथम "कर्ता कारक" दूसरा होता है "विषय कारक" ।

उदाहरण के लिए जैसे एक घड़ा होता है, उसके  निर्माण के पीछे 2 कारक कार्य करते हैं प्रथम जो कि घड़े का निर्माण करता जी जैसे कुम्हार वह कर्ता कारक है, तथा दूसरा वह जिससे घड़े का निर्माण होता है अर्थात "विषय कारक" जैसे मिट्टी ।

भारतीय परिदृश्य कहता है कि विज्ञान बात करता है उस मिट्टी की जो कि घड़े का विषय कारक है जिससे घड़ा निर्मित है जबकि धर्म बात करता है उस कुम्हार की जो कि घड़े का निर्माता अर्थात कर्ता कारक है । अतः दोनों में कोई भी विरोधाभास नहीं है ।

अभी हाल ही में एक मसला सामने आया सबरीमाला प्रकरण जिसे उच्चतम न्यायालय ने यंग लायर्स असोसिएशन बनाम भारत संघ के वाद में निर्णीत किया म वास्तव में यह मसला धर्म का नहीं अपितु विज्ञान का था यहां मसला ब्रह्मचर्य आदि का बिल्कुल नहीं था क्योंकि गर्ग संहिता के अनुसार ईश्वर सदैव ब्रह्मचारी होता है वह चाहे जिस रूप में हो यहां मसला था स्वच्छता का पूजा के 40 दिनों में उस 4 दिन का बीच में आने का, किन्तु विज्ञान में आज के दौर में कुछ स्वच्छता सम्बन्धी अविष्कारों के जरिये इस समस्या को पूर्ण रूप से हल कर दिया है अतैव आज के भी दौर में जब विज्ञान के पास ये स्वच्छता के विकल्प नहीं थे उसी दौर के नियमों के पालन पर जोर देना शायद सही नहीं था ।

इसी प्रकार यदि हम विज्ञान या धर्म दोनों में से किसी का दुरुपयोग करेंगे तो विनाश ही होगा । विज्ञान से बनाये हथियारों द्वारा चुटकियों में समस्त संसार का नाश किया जा सकता है वहीं अगर सत्ता धर्म का दुरुपयोग करती है और उसे अफ़ीम की तरह प्रयोग करती है तो विभिन्न सम्प्रदायों के मध्य बलबों और दंगों में संसार नष्ट हो जाने का खतरा होगा  ।

अतः आवश्यक है कि विज्ञान और धर्म को सहगामी बनाएं और एक उन्नत समाज का निर्माण करें जो कि न केवल तकनीकी रूप से उन्नत हो अपितु व्यवहारिक रूप से भी उन्नत हो । विज्ञान हमें तकनीकी रूप से उन्नत बना सकता है और धर्म हमें व्यवहार और आचरण में उन्नत बना सकता है । दोनों मिलकर एक आदर्श "हरित विश्व" का निर्माण कर सकते हैं जहां पर न तो भय हो न भूख और न ही भ्रष्ट आचरण । हमारी संस्कृति जैसा आशा करती है "सभी सुखी हों, सभी निरोग, अभी अच्छा दिखें, किसी को दुःख न हो ।" इसी को पश्चिमी साहित्य में "यूटोपिया" कहा गया है और भारतीय साहित्य में "रामराज्य" नाम दिया गया ।

PCS (J) mains एग्जाम में "Science and Religion" विषय पर मेरे द्वारा लिखे गए निबन्ध का हिंदी अनुवाद ।।

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