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Showing posts from July, 2017

महिलाओ के प्रति बढ़ते अपराध : बदलते मानवीय तथा नैतिक मूल्य ===============

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भारत के केन्द्रीय गृह मंत्रालय के संस्थान नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा ११ नवम्बर २०१६ को वर्ष २०१५ की क्राइम रिपोर्ट के आंकड़े जरी किये गये जिसमें महिलाओ के विरुद्ध अपराधो के कुल ३,२७,३९४ मामले भारतीय दंड संहिता और अन्य राज्य स्तरीय कानूनों के अंतर्गत दर्ज किये गये | जैसा कि इस पुस्तिका के आंकड़े बताते हैं कि इनमें स्व ४४३७ मामले तो बलात्संग के है | आगे इन आंकड़ो में प्रदर्शित है कि वर्ष २०१५ में भारत में दर्ज किये गये कुल अपराधों में महिलाओ के प्रति अपराध का प्रतिशत ५३.९% है तथा ८९.४ % मामलों में चार्जशीट भी दाखिल कि गयी है अर्थात ये मामले प्रथम दृष्टया सही पाए गये है | यही नहीं पिछले दस सालों में यानि वर्ष २००५ के मुकाबले इन अपराधों कि संख्या ८८.७% अधिक है तथा वर्ष २०१४ के मुकाबले २२.७% अधिक है |         आखिर इस भयानक तस्वीर के कारण क्या हैं ? क्या गरीबी ? अरे नहीं –नही हम तो लगातार ७.२% कि विकासदर से आगे बढ़ रहे है ये कैसे हो सकता है ? तो फिर क्या अशिक्षा इसका कारण है ? शायद हो सकता था किन्तु हमारी साक्षरता दर तो लगातार बढ़ ही रही है हम और ज्यादा आधुनिक तथा साधन और सुविधा

मुस्लिम वैयक्तिक विधि ( मुस्लिम पर्सनल लॉ)

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विवाह ( निक़ाह) ================ जस्टिस वली कहते हैं कि मुस्लिम विधि में निक़ाह कोई कोई संस्कार नहीं है बल्कि एक संविदा (समझौता) है जिसमें दोनों पक्षो के कुछ अधिकार व दायित्व उत्पन्न हो जाते है । फैजी के अनुसार जैसे विक्रय की संविदा में होती है वैसे ही निक़ाह में भी "एजाब" (प्रस्ताव) और "कुबूल" (स्वीकृति) होती है और मेहर का आदान प्रदान उसमें प्रतिफल (मूल्य) होता है । मुस्लिम विवाह के लिए आवश्यक है कि दोनों पक्षों ने "ख़यार-उल-बुलूग"(यौनागम) की अवस्था प्राप्त कर ली हो जो कि मुस्लिम विधि के अनुसार 15 वर्ष है । दूसरी शर्त है वे सम्बन्ध "करावल" (रक्त सम्बन्धी) , " मसारफ" (विवाह सम्बन्धी) तथा "रिजा" (धात्रेय या दुग्ध सम्बन्धी) न हों ।   तीसरी शर्त है जिस महिला से विवाह होगा वो या तो इस्लाम को मानने वाली हो अथवा किसी अन्य "किताबी मजहब" को अर्थात वो अग्निपूजक या बुतपरस्त न हो । चौथी शर्त है 2 पुरुष और स्त्री गवाह और वे मुसलमान हों किन्तु किसी गैर मुस्लिम के साथ यदि विवाह हो रहा हो तो एक गवाह गैर मुस्लिम भ

हिन्दू वैयक्तिक विधि==========

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परिचय ------------------- प्राचीन भारत में धर्म को इसोपासना से अधिक विधि का विषय माना जाता था आप किसी भी सम्प्रदाय के अनुयायी हो किन्तु आप पर एक समान विधि लागू होती थी । महर्षि याज्ञवल्क्य ने धर्म (विधि) के चार स्रोत बताये हैं । श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियात्मन: । सम्यक्संकल्पज: कामो धर्ममूलमिदं स्मृतं ।। अर्थात श्रुति स्मृति सदाचार तथा प्रथाएं ( सम्यक संकल्प द्वारा उत्पन्न इच्छाएं) । आगे याज्ञवल्क्य ने पुनः ज्ञान के चौदह स्तम्भ बताये हैं - पुराण-न्याय-मीमांसा धर्मशास्त्रांग मिश्रितः । वेदः स्थानानि विद्यानां धर्मस्य च चतुर्दशः ।। अर्थात चार वेद , छः वेदांग , धर्मशास्त्र , न्याय , पुराण और मीमांसा । मैंने यहां पर इसलिए याज्ञवल्क्य स्मृति से ही उदाहरण देना इसलिए उचित समझा क्योंकि भारत में हिन्दू विधि पर मनुस्मृति की अपेक्षा याज्ञवल्क्य स्मृति का ही प्रभाव ज्यादा है या यूं कहें उसी से भारत में हिन्दू विधि संचालित होती है । भारत में हिन्दू विधि पर प्रथाओं (देशाचार , लोकाचार और कुलाचार) का अत्यधिक प्रभाव होने के कारण हिन्दू विधि को कई शाखाओं में बां