तर्कबुद्धि से समाधान
उज्जैन में एक बहुत प्रसिद्ध ज्योतिषी और खगोलशास्त्री रहते थे । उनके उनकी पत्नी का प्रसव होने वाला था तो उन्होंने एक गेंद भिजवाई प्रसूति गृह में और कहा कि जैसे बच्चे का जन्म हो ये गेंद बाहर फेंक दे कोई और वो समझकर काल गणना और ज्योतिष गणना कर लेंगे ।
दुर्योग था कि प्रसूति के दौरान उनकी पत्नी बेहोश हो गयी उसके इलाज में दाई पुत्र जन्म में उपरांत गेंद बाहर फेंकना भूल गयी जब उसे याद आया तो उसने फेंका । जब उन्होंने गणना की तो उनकी गणना में पता चला की इस मुहूर्त में जन्म लेने वाला व्यक्ति वर्णसंकर और कुल नाशक मूढ़ होगा ।
उन्हें पत्नी पर अविश्वास हुआ और वे पुत्र को देखे बिना दोनों को छोड़कर चले गए ।
उनका पुत्र अत्यंत मेधावी था उसने खगोलशास्त्र में प्रवीणता हासिल की और उज्जैन चला गया ।
एक दिन उन खगोलशास्त्री ने घोषणा की कि आज आकाश से एक पिंड गिरेगा जिसका भार 500ग्राम होगा । वो बालक जो युवा हो चुका था उसने उन्हें चुनौती दी की नही उसका भर 550 ग्राम होगा । उस काल की प्रतीक्षा हीने लगी पिंड आपत हुआ । तौल पर पिंड का वजन वास्तव में 550 ग्राम ही था ।
ज्योतिषी ने कहा कि कौन सी ऐसी गणना है जो मुझे नही पता और तुमने उसके आधार पर इसका सही भार बताया ? तुम हो कौन ?
युवक बोला मुझे आपकी गणना पर पूरा विश्वास था बस मैंने उसमे अपनी तर्कबुद्धि जोड़ी वायुमंडल में प्रवेश के उपरांत उस कण में जलवाष्प और धूलकण भी संलिप्त हो जायेंगे इससे उसका भर इतना और उसमे और जुड़ जाएगा । और मैं वही हूँ जिसे आप इसी सामान्य तर्कबुद्धि के अभाव में त्याग कर वर्षों पहले चले आये थे ।
वास्तव में वे ज्योतिषी हम ज्यादातर भारतीयों के प्रतिनिधि है इस कथा में । हम हद दर्जे के छिद्रान्वेषी और शकी स्वभाव के है हमे हर व्यक्ति में हर चीज में बस कमी दिखती है जो हमे प्राप्त हो ।
कांग्रेसी को सावरकर गद्दार दीखते है तो संघी को गांधी । किसी को मदर टेरेसा से नफरत है तो किसी को राम कृष्ण को गाली देने का मन । किसी को राम का सीता से अग्नि परीक्षा वाली चौपाई दिखती है और वो नही दिखती जब राम ने कहा "कुछ दिन अग्नि मा करहु निवास.........." । किसी को मनु का शूद्र पर प्रतिबंध आरोपित करना दिखता है पर शूद्र की परिभाषा नही दिखती ।
असल में हम स्वयं को निराशावाद की तरफ ले जा रहे है हमें लगता है एक क्रांति होगी सब सही हो जायेगा । पर हम क्रांति के बाद का कुछ नही सोचते फिर क्या होगा हम इतिहास से नही सीखना चाहते की हर क्रांति के उपरांत एक प्रतिक्रांति होती है दुनिया के हर क्रांति करने वाले देश ने उसका दंश झेला है । अभी खड़ी हुई अरब क्रांति का दंश ISIS के रूप में पूरी दुनिया झेल रही है ।
इसलिए सुधार की प्रक्रिया को तेज़ किया जाये बस हमें "लोक-चेतना" के विकास की आवश्यक्ता है जो बढ़ भी रही है । इसे न सुप्त होने दे और हम इस प्रक्रियावाद से बाहर आये ।
सिस्टम पर बस सवाल उठा देना मसले का हल नही सवाल के साथ उसका जवाब ढूढना मसले का हल है ।
धन्यवाद 😊।।
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