आत्ममुग्धता और चारण गान ।।

आज मैं एक राष्ट्रवादी होने के नाते और देश की ये दशा देखने के बाद इस शीर्षक से लिखने के लिए विवश हो रहा हूँ | क्युकी जब मैं भारत के अतीत को देखता हूँ तो मैं बेहद भयाक्रांत हो जाता हूँ इन शब्दों से | ज्यादा पुरानी बात न करते हुए मैं बात शुरू करता हूँ राजपूत काल से तो देखता हूँ की इस प्रकार के कार्यों के चरम पर था ये युग | उस समय राजपूत पूर्णतया आत्ममुग्ध और चारण गान  की आदी हो चुके थे | और परिणति क्या हुई हमारा देश अरब आक्रमणकारियों से हार गया |
      उस समय के मशहूर ग्रन्थ परमाल रासों ( आल्ह खंड ) में तो यहाँ तक लिख दिया गया की  बारह बरिस ले कूकुर जिए और चुदः ले जिए सियार बरिस अठारह क्षत्रिय जीए की आगे के जीवन का धिक्कार| ये चारण गान की अति थी की हर छोटी मोटी लड़ाई को बढ़ा चढ़ा कर लिखकर रोज लडाइयां होती थी | और राजपूत इतने आत्ममुग्ध थे की वो बिना सोचे किसी भी शत्रु का पीछा किये बिना छोड़ देते थे जो उनके लिए घातक सिद्ध हुआ अगर ११९१ ई में मुहम्मद गोरी को पृथ्वीराज ने बिना आत्ममुग्ध हुआ खदेड़ कर मार दिया होता तो ११९२ ई में पृथ्वीराज खुद न मारे जाते | इसका परिणाम ये हुआ की मेरा देश जो कभी अमन और शांति का देश था वो कत्ले आम का देश बन गया धर्म के नाम पर करोडो करोड़ लोग मारे गयी शिक्षा के वो मंदिर जला दिए गए जो भारत को सम्पूर्ण विश्व का विश्वगुरु बनाये हुए थे | वो उद्योग भी विनष्ट हो गए जिनके कारण भारत सोने की चिड़िया कहलाता था | कभी भारत के बारे में प्रसिद्द था की सोने का उत्पादन कही भी हो पर अंततः उसे भारत ही आना है और फिर इसी आत्ममुग्धता और चारण गान के कारण भारत दरिद्रता की ओर चल पडा |
       फिर आगे बढ़ते है सल्तनत काल और मुग़ल काल की बात करते है जहा आत्ममुग्धता तो कम  लेकिन चारण गान का बोलबाला था और अत्याचार का चरम किसानो से इसी चारण गान ने २/३ तक लगान वसूले | और धीरे धीरे ये दोनों चीजें इतनी ज्यादा बढ़ गयी भारत में की से मुस्लिम साम्राज्य भी पतन की तरफ अग्रसर हुआ | और अंग्रेजों ने हमारे देश को लूट लूट कर खंगाल दिया पहले उन्होंने १७५७ से १८५७ तक एक कंपनी की आड़ में लूटा फिर १८५७ से १९४७ तक प्रत्यक्ष रूप से इंग्लिश सिंहासन ने लूटा उस दौरान भी हम अपने इन दोनों गुणों से वंचित नहीं रहे हम अंग्रेजो से लड़ने की साथ साथ आपस में भी एक वर्चस्व की जंग लड़ते रहे | लेकिन येन केन प्रकारेण हम आजाद हुए तो हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री खुद चारण बन  कर स्वयं ही एक ब्रितानी महिला की चरण वंदना करते हुए हमें कश्मीर समस्या रुपी उपहार प्रदान कर गए | फिर तो उनकी पार्टी में एक चारण गान की परम्परा ही शुरू  हो गयी | बीच में कुछ दिनों तक ये परम्परा नहीं दिखी वो भी शास्त्री जी के कार्यकाल में उसके बाद लगातार आजतक वही परम्परा हमारे देश की सबसे पुरानी पार्टी में अब तक बदस्तूर जारी है |
   परन्तु मेरे ये सब इतने कहने का मतलब सिर्फ भारत का इतिहास बताना या किसी पार्टी या मेरे अपने देश की बुरा करना नहीं था | मैं बस इस नयी सरकार को एक सन्देश देना चाह रहा था की नयी नव गठित सरकार इन दोनों भारतीय बुराइयों से बचे | मैं जानता हूँ नयी सरकार का मुखिया सन्यासी व्यक्ति है परन्तु सत्ता नहुष जैसे सन्यासी को इन्द्रानी के मोह में डालकर सांप बनवा देती है और दूसरी ओर भरत है जो १४ वर्षो तक सिर्फ खडाऊ कि पूजा करते हैं | मैं ये नहीं कहता की मोदी जी भरत बने पर नहुष से सबक ले और वैसा बनने से बचे मैं मोदी जी को राम जैसा राजा देखना चाहता हूँ | समय आने पर अगर राज हित कही प्रभावित हो तो अपने सबसे प्रिय लोगों को छोड़ने में संकोच न करे जैसे राजा राम चन्द्र ने समय आने पर अपने प्रिय भ्राता लक्ष्मण और प्रियतमा सीता का परित्याग कर दिया | वैसे ही अगर उनके किसी अति प्रिय व्यक्ति पर कोई भी आरोप लगता है तो वे उन्हें उचित दंड की व्यवस्था करें यही उस चारण गान की एक मात्र औषधि है | और बाकी मोदी जी की कार्य क्षमता और उनके उर्वर मस्तिष्क पर मुझे पूर्ण विश्वास है की वो हमें हम भारतीयों को आदर्श भारत अवश्य प्रदान करेंगे ||
जय हिन्द | जय भारत ।।

Comments

Popular posts from this blog

हिन्दू वैयक्तिक विधि==========

राम रावण युद्ध

शरद ऋतु