लिंगायत संप्रदाय

लिंगायत संप्रदाय ===========================================
आजकल कर्नाटक की राजनीती के कारण यह सम्प्रदाय काफी चर्चा में है | बहुत पहले एक साधक हुए थे जिन्हें लकुलीश नाम से जाना जाता था उन्हें कुछ लोग भगवान शिव का अवतार भी मानते थे | वे भगवान शिव की पार्वती या सती के अस्तित्व से अलग पूजा करते थे | उनका एक मत था जिसे कालान्तर में वीर शैव नाम से जाना जाने लगा | लिंगायत सम्प्रदाय यही वीरशैव हैं |
किन्तु ऐतिहासिक स्रोत जो कहानी कहते हैं हैं उसके अनुसार इस सम्प्रदाय की उत्पत्ति कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के समुद्रतट पर हुई और परिस्थितियाँ कुछ ऎसी थी | प्राचीन काल में शिव मतानुयायी लोग जो की जैन प्रभाव के कारण जैन बन गये थे वे लोग पुनः शैव बनने के उपरांत लिंगायत कहलाये | इसलिए इनके रीतिरिवाजों में जैन मत से साम्यता दिखाई देती है |
दो ख़ास बातें है इस सम्प्रदाय की जैसे जैन मठ होते थे वैसे ही इन्होने शैव मठ भी स्थापित किये जिसमें से मुख्य इस प्रकार हैं –
केदारनाथ में एकोराम द्वारा ;
श्रीशैलम में पंडिताराध्य द्वारा;
वलेहल्ली में रेवण द्वारा;
उज्जैनी में मरुल द्वारा;
वाराणसी में विश्वराध्य द्वारा |
प्रत्येक लिंगायत ग्राम में एक मठ होता है जिसका सम्बन्ध इन प्राचीन मठों में से किसी से होता है |
द्वितीय ख़ास बात जो जैन मत से ली गयी वो है समानता का भाव सारे लिंगायत एक ही जंगम के सदस्य माने जाते हैं तथा वे अपने जंगम के बाहर विवाह सम्बन्ध स्थापित नहीं करते शायद ने उनके वृशल से पुनः शैव बनने के कारण ऐसा हुआ हो |
लिंगायत सम्प्रदाय में जब बच्चे के जन्म होता है तो उसकी रक्षा हेतु अष्टवर्ग संस्कार किये जाते हैं | जिसके आठ विभाग निम्नवत है –
गुरु;
लिंग;
विभूति;
रुद्राक्ष;
मन्त्र;
जंगम;
तीर्थ;और
प्रसाद |
यहाँ पर पांचो मठों की प्रतिकृति एक वेदिका पर बनाई जाती है प्रयेक कोण पर एक दीप रखा जाता है और अपने जंगम के मठ का दीप मध्य में रखा जाता है | लिंगायत गले में एक लिंग धारण करता है जिसका पूजन वह 2 बार भोजन से पूर्व करता है |
लिंगायत वास्तव में दो प्रकार के होते हैं प्रथम अर्धलिंगायत तथा द्वितीय पूर्ण लिंगायत | अर्ध लिंगायत शव को दफनाते हैं जबकि पूर्ण लिंगायत शव का दहन करते हैं | अर्धलिंगायत सम्प्रदाय के नियम अपेक्षतया कड़े है विवाह आदि के सम्बन्ध में |
वास्तव में हम आज के दौर जो अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक का निर्धारण करते हैं उसका आधार आस्था ही है क्यों की यदि हम संस्कृति को आधार मानते हैं किसी तरफ से सिख, जैन या बौद्ध संस्कृति भारतीय (हिन्दू) संस्कृति से भिन्न नहीं है न ही बोली भाषा में ही भिन्न है फिर भी उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त है सिर्फ इसलिए की उनकी पूजा पद्धति थोड़ी सी भिन्न है किन्तु लिंगायतो की न तो पूजा पद्धति भिन्न है न ही रीतिरिवाज न ही संस्कृति फिर क्यों उन्हें अलग अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा रहा है ? क्या महज इसलिए की वे एक बंद समाज की अवधारणा का पालन करते हैं ? समाज में राजनीति द्वारा इसप्रकार के बंटवारा बेहद शर्मनाक और कुत्सित है | समाज का निर्माण सबको जोड़ने के लिए किया गया है न कि बंटवारे के लिए |

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