अध्यात्म पथ से विचलन


कुर्सी पर बैठे बैठे पता ही नहीं चला कैसे नींद आ गयी तभी किसी का हाथ सर पर महसूस हुआ आंखें खोली तो देखा शिव खड़े थे । मैंने अभिवादन किया और  आसन दिया ।

शिव बोले - हिमांशु क्या बात है बड़े विचलित नजर आ रहे हो  । कोई शोक हो तो निःसंकोच हमसे कह सकते हो ।

मैं बोला - हे शिव !आध्यत्म के पथ पर चलने वालों का विचलन देखकर दुःख होता है । आखिर ये है क्या कोई षड्यंत्र है अथवा नियति या कुछ और ?

शिव मुस्कुराते हुए बोले - बस इतनी सी बात पर परेशान हो तो सुनो एक कथा सुनाता हूँ सुनो -

किसी नगर में आत्माराम नाम का एक व्यक्ति रहता था उसके घर में काफी गन्दगी रहती थी । एक बार राजा की कृपा से उसे एक गाय प्राप्त हुई जिसका नाम श्रद्धा रखा । वह जप, तप, व्रत, यम, नियम और संयम नाम की घास करती थी उसका भाव नाम का बछड़ा था जिससे पेन्हाकर वह निवृत्ति के पात्र में उसका सेवक जिसका नाम विश्वास है परमधर्म नामक दूध दुहता था । निष्काम रूपी अग्नि पर खूब गर्म करता है । उसे संतोष की हवा से ठंडा करता था और क्षमा का जामन डालकर धैर्य रूपी दही जमाता है । आनन्दपूर्वक विचार रूपी मथनी, दम रूपी आधार और सत्यवचन रूपी रस्सी से उसे मथते हुए उसमें से निर्मलता, वैराग्य, सौभाग्य और पवित्रता का मक्खन निकलता है । वह शुभ कर्मों की सहायता से योग अग्नि प्रकट कर उसे बुद्धि से पकाता है जिसमें ममता अर्थात मोह का मल जल जाता है तब तर्कबुद्धि रूपी घी का निर्माण होता है । उसे चित्त के दिए में भरकर तीनो अवस्थाओं तथा तीनों गुणों के कपास की बत्ती बनाकर ऐसे विशिष्टज्ञान रूपी दीपक जलाता है जिसके निकट जाते ही काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर रूपी सारे पतंगे जलकर खाक हो जाते  है ।

इस प्रकार की ज्योति का प्रकाश अत्यंत प्रचण्ड होता है जिससे प्रत्येक प्रकार के दुःख ,भ्रम, भेद आदि का नाश हो जाता है । अविद्या सपरिवार मोह आदि सहित भाग जाते हैं । इस बुद्धि के उजाले से घर के समस्त अंधेरे और गन्दगी साफ हो जाती है ।

मैंने पूछा - हे शिव! जब समस्त अविद्या और अहंकार का नाश हो जाता है तो फिर व्यक्ति का अध्यात्म से विचलन कैसे हो जाता है ।

शिव बोले - बड़ी जल्दी में लग रहे हो सुनो बताता हूँ -
इस प्रकार जो अंधकार को दूर करने की प्रक्रिया है इसमें अनेक विघ्न आते हैं । ऋद्धियाँ और सिद्धियां बुद्धि को प्रलोभित करती हैं । वे किसी भी प्रकार छल अथवा बल से उसके समीप जाकर आँचल से उस ज्ञान के दीपक को बुझाने की कोशिश करती हैं । किन्तु जब बुद्धि अत्यंत चतुर होती है तो अपना अनहित जानकर वह उनकी तरफ ध्यान नहीं देती है और आगे बढ़ती रहती है । किंतु असफल होने के बाद भी देवता अन्य उपाय करते हैं।  प्रत्येक इन्द्रिय द्वार पर बैठे हुए देवता अन्य उपाय करते हैं । प्रत्येक् इन्द्रिय द्वार पर बैठे हुए देवता जब विषयों से आसक्त पवन को आते देखते हैं तो वे इंद्रियों के कपाट खोल देते हैं और जो विषयों का भयंकर तूफान उस घर में प्रवेश कर जाता है और विज्ञानरूपी दीपक बुझ जाता है और अज्ञान तथा अंधकार मिट नही पाता बुद्धि विषयों हवा से विकल हो उठती है और वह व्यक्ति दुःख को प्राप्त होता है ।

मैंने कहा - हे शिव! एक प्रश्न और मुझे साल रहा है आज्ञा हो तो पूछ लूँ ।

शिव हंसते हुए बोले - हिमांशु तेरे सवाल बहुत होते हैं अच्छा पूछो ।

मैं - हे महादेव! क्या देवताओं को मनुष्यो से कोई ईर्ष्या है आखिर वे ऐसा क्यों करते हैं ? व्यक्ति को विषयों में क्यों भटकाते है ।

शिव बोले- नहीं ऐसी बात है देवों के सभी कार्य विश्व कल्याण हेतु ही होते हैं । देवताओं द्वारा किये जाने वाले प्रलोभन अथवा विषयों की तरफ उन्मुख करने का प्रयास उन लोगों को अलग छांटने की प्रक्रिया है जिनकी बुद्धि दृढ़ नहीं है । क्योंकि यही मानव दिव्यता को प्राप्त कर देव पद प्राप्त करेंगे जहां पर शक्तियां प्राप्त होने के बाद ये विषयासक्त, भोगी, अहंकारी और भ्रष्ट हो जाएंगे जिससे कि लोकहित प्रभावित होगा अतैव इन्हें इस प्रक्रिया से गुजारना पड़ता है ।

जानते हो हिमांशु अध्यात्म के पथ पर निकल पड़ना आसान होता है, कुछ दिन तक चलते रहना आसान हो सकता है किंतु हमेशा चलते रहना और दिव्यता को प्राप्त करने के लिए कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है और थोड़ा सा विचलन भी आपको इस पथ से हटा देता है वो किसी भी प्रकार का हो । जानते हो इस कहानी का आत्माराम स्वयं व्यक्ति की आत्मा है और वो घर व्यक्ति का अंतस् और राजा जिसकी कृपा से उसे सात्विक श्रद्धा की गाय प्राप्त हुई वो ईश्वर है ।

शिव से सुनकर मेरा विषाद दूर हुआ और शिव ने मुझे हर्षित देख  वहां से गमन कर दिया ।

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