लोक बर्ताव

लोक बर्ताव ==============================
खूब लम्बी चौड़ी भीड़ देखकर मुझे मुझे गुस्सा आया बाहर खड़े नियंत्रक से दुर्वाद करके मैं यह कहते हुए चला आया “मेरे लिए तो अब शिव के पास भी वक्त नहीं बचा है, अब मैं जा रहा हूँ फिर कभी नहीं लौटूंगा; रहें सब अपने इन दिखावे के भक्तों के साथ जो धन सम्पदा, पत्नी, पुत्र आदि पाने के लिए इनकी भक्ति या चापलूसी करते हैं |”
मैं अभी कुछ दूर ही आगे आया था कि पीछे से किसी की आवाज सुनाई दी जो मुझे बुला रहा था | देखा तो पसीने से लथपथ भृंगी अपनी तोंद पकड़े हुए भागा आ रहा था | मेरे पास आकर बोला – “तुम्हारे कानों में क्या हो गया है हिमांशु ? शिव ने आवाज दी इतनी बार तुम सुने ही नहीं अब मुझे देखो यहाँ तक दौड़ना पड़ा | चलो जल्दी शिव बुला रहे हैं |”
मैं आया मुझे देखते ही शिव बोले तुझे ज्यादा गुस्सा आने लगा है ? तू डांट खाकर सुधर जाएगा या फिर थप्पड़ से इलाज करना पड़ेगा | मैं सर झुकाए खड़ा रहा | शिव बोले क्या करूं इस लडके का बचपना जाता ही नहीं है, हर थोड़ी देर में बेकार की बात करता है और बिदक कर मेरी बराबरी करने लगता है कि शिव को क्रोध आता है मुझे भी आता है जल्दी से | अरे पागल मेरे क्रोध में भी कल्याण छिपा होता है, सृष्टि का प्रलय नहीं होगा तो नवसृजन कैसे होगा बता ? तू सुधर जा नहीं तो किसी दिन दंड मिलेगा तुझे |
कहाँ जा रहा था तू ? कह रहा था सब छोडकर जा रहा हूँ | बता कौन सी ऐसी जगह है जहाँ तू मुझे छोडकर जा सकता है भागकर दिखा | इतनी डांट सुन अब तो मेरी आँखे भी बिना रुके अपने ही चरण का अभिषेक करने लगीं | शिव बोले – अच्छा तू रो मत अब कोई नहीं डांटेगा तुझे | पर तू जानता भी है जिन शब्दों का प्रयोग किया उनका अर्थ ?
मैंने आँखें पोंछते हुए कहा – आप बतायेंगे तभी तो जानूंगा मुझे क्या पता ? आप भी व्यस्त रहते हैं |
शिव बोले – शुरू हो गये तेरे ताने ? सुन बताता हूँ तुझे, सामान्य लोक बर्ताव के आधार पर बुद्धि चार प्रकार ही होती है | प्रथम मूढ़ बुद्धि, ये आने वाले भयंकर सामाजिक दुष्परिनाम की सोचते भी नहीं इसमें दो तरह के लोग आते हैं पहले असंस्कृत जो सत्य सम्भाषण की आड़ में दूसरों का अपमान करते हैं और फिर तर्क देते हैं कि उन्होंने सत्य ही तो बोला था | दुसरे होते हैं चारण प्रकृति के व्यक्ति ये लोग परिणाम की परवाह किये बिना अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी भी बात का समर्थन या किसी का चरणवन्दन कर सकते हैं किन्तु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इनका आशय बेईमानीपूर्ण होता है |
द्वितीय है ज्ञान बुद्धि , इनके लिए सत्य ही सर्वोपरि है किन्तु इन्हें सम्भाषण की कला आती है अतैव इनके सत्य में कटुता अथवा किसी का अपमान निहित नहीं होता है | ये वही कहना या बोलना पसंद करते हैं जो समाज के अधिकतम लोगों के लिए हितकर है तथा बात को परिष्कृत करके रखते हैं बिना मिथ्या मिश्रण के |
तृतीय प्रकार है व्यवहार बुद्धि का , इस प्रकार के व्यक्ति में लोक वासना पाई जाती है | ये अपने हर कार्य व्यवहार को इस प्रकार से करना चाहते हैं कि कोई नाराज न हो उनसे हालांकि उनका कोई स्वार्थ नहीं निहित होता है इसके पीछे; किन्तु वे अपने व्यवहार से सबको खुश या संतुष्ट रखना चाहते हैं इसके लिए कभी कभार मिथ्या सम्भाषण का भी प्रयोग करते हैं |
चतुर्थ प्रकार है व्यापार बुद्धि का; इसमें व्यक्ति वही बातें या व्यवहार करता है जो कि लाभकर हैं उसके लिए किसी अन्य को आशयपूर्वक हानि पहुंचाने का कोई उद्देश्य नहीं होता है | किन्तु प्रतियोगियों के मध्य सामान्य प्रतियोगिता के दांव पेंच बिना बुरे आशय के चलते रहते हैं |
अब तुम बताओ तुम्हारे द्वारा कही गयी बात किस प्रकार की बुद्धि के अंतर्गत आती है ? मैं सर झुकाए हुए बोला – मूढ़ बुद्धि | शिव बोले - सोचो तुम क्या लेने आये हो और क्या ग्रहण कर रहे हो ?
मैंने महादेव से क्षमा मांगी और कहा लेकिन महादेव यदि आप चाहते तो मुझे स्वप्रेरण से भी बुला सकते हैं फिर क्यों भेजा भृंगी को ? महादेव ने कहा मैं तुम्हें बताना चाहता था कि तुम्हारी एक मूर्खता के कारण कितने लोगों को कष्ट हुआ है ताकि आगे से ध्यान रख सको |
चित्र - साभार एक मित्र से उसे रोयल्टी नहीं दी है इस लिए नाम नहीं लिख सकता इसपर मेरा प्रतिलिप्याधिकार माना जाए | जब उनके द्वारा दी हुई चॉकलेट कहा लूँगा तब नाम लिखने की इजाजत मिलेगी |

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