जाओ तोहे राम मिलेंगे

 जाओ तोहे राम मिलेंगे ===========


हमने अपने मित्र को दुःखी देखा तो उन्हें समझाया की एक असफलता जीवन में अवसरों का अंत नहीं होता है । पर हमेशा की तरह सामने वाले को तो समझाकर शांत किया और चेहरे पर फिर से मुस्कान ला दी पर मेरा क्या अब  उसका कष्ट मेरा हुआ उसका बोझ अब मैं लेकर टहल रहा था और खोज रहा था किसे दूं  । फिर सोचा चलो शिव से मिलते हैं वही ऐसी जगह हैं जहां पर अपने शोक को मैं छोड़ सकता हूँ । फिर क्या पँहुच गया शिव के सम्मुख उनसे अभिवादन किया तो बोले - कहो हिमांशु आज कैसे अभी जल्दी ही तो मिले थे ।
मैंने कहा - हे शिव! एक बोझ था बस वही उतारना था आपपर ।

शिव मुस्कान के साथ बोले - जब बोझ पड़ता है तभी याद करते हो ? चलो बताओ क्या बात है ।

मैं - हे महादेव ! व्यक्ति की असफलता उसे व्यथित क्यों कर देती है और उसकी व्यथा का निवारण कैसे हो ?

शिव बोले - व्यक्ति की फल के प्रति आसक्ति ही व्यथा का कारण है यदि वो फल के प्रति आसक्त न हो तो कोई व्यथा नहीं होगी । अच्छा सुनो एक कथा सुनाता हूँ तुझे ।

एक राजकुमारी थी , रामभक्त थी । उसके पिता उसका विवाह करवाना चाहते थे पर वो नही चाहती थी विवाह आदि करना उसे बस राम चाहिए थे । विवाह तय हुआ शादी के लिए बारात आई किन्तु अपने स्थान पर दासी को बैठाकर वो महल से भाग निकली और जंगल पँहुच गयी । वहां एक साधु उससे मिले । उसने ऋषि से अपनी जिज्ञासा प्रकट की बोली मुझे कोई उपाय बताइये मुझे राम से मिलना है ।

ऋषि बोले इस जन्म में तो नहीं मिल सकती तुम क्योंकि तुममें अभी राम को पाने की योग्यता नहीं आई है । राजकुमारी ने कहा तो फिर क्या करना होगा राम को पाने के लिए ।

ऋषि ने कहा तुम्हे वे सारी चीजें त्यागनी होंगी जो तुममें दुष्प्रवृत्तियाँ उत्पन्न कर सकती हो जो इस जन्म में और इस देह में तुम्हारे लिए सम्भव प्रतीत नहीं होता । राजकुमारी ने कहा मैं सब कुछ त्याग करने के लिए तैयार हूँ । तो फिर ऋषि ने आशीर्वाद दिया "जाओ तोहे राम मिलेंगे " ।

वही राजकुमारी अगले जन्म में शबरी हुई जिसके पैदा होते ही उसके माता पिता चल बसे वह उन्हें प्रेम से वंचित हो गयी , जिधर जाती लोग यही कहते ये तो पैदा होते ही मां बाप को खा गई, पर उसने कभी राम को दोष नहीं दिया । वह अत्यंत कुरूप थी चेहरे से , भौतिक संसार के लोग प्रथम दृष्टया व्यक्ति का आकलन चेहरे से ही करते हैं तो उसका कुरूप कहकर मज़ाक उड़ाया गया और विवाह भी नहीं हो सका उसका किन्तु उसका राम के प्रति स्नेह कम नहीं हुआ उसे राम ही चाहिए थे न कि संसार । वह गरीब भीलनी थी उसके पास धन भी नहीं था पर उसे राम चाहिए थे न कि धन । किन्तु उसकी इसी चेष्ठा का परिणाम था कि उसे मतंग जैसे मुनि गुरु के रूप में मिले । उन्होंने प्रयाण करते समय शबरी को एक आश्रम दिया और बोले तो यही निवास कर राम तुझसे मिलने आएंगे यहां पर ।

शबरी ने पूछा गुरुदेव राम आ भी गए तो कैसे पहचानूँगी की राम ही आये हैं कोई और नहीं । मतंग मुनि ने कहा यहां पर सबसे पहले कोई आएगा तो राम ही आएंगे उससे पहले कोई भी नहीं आएगा । वो ऋषियों के जागने से पूर्व उनके पूजन की और भोजन की सामग्री उन तक पँहुचा देती उन्हें भान भी न रहता किसने किया । वह हमेशा राम में ही ध्यान लगाए रहती थी । वह अपनी कुटी को रोज बुहारती रास्तों को साफ करती सजाती कुटिया को रास्तों पर फूल डालती आज मेरे राम इसी रास्ते से आएंगे मुझे दर्शन देने । अगर पत्ता भी खटकता तो उसे लगता मानो राम आ गए वो उठ कर दौड़ पड़ती । उसने अपनी समस्त इंद्रियों और विषयो को बस राम में लगा दिया था । वह नित मीठे फल चुनकर लाती; राम आएंगे तो उन्हें खिलाऊंगी क्या ?  उसके लिए तो "रामै खाना रामै पीना , राम ही नींद औ राम बिछौना" हो गए थे । उसमें हमेशा राम ही रमण करते थे ।

और एक दिन वास्तव में "वय किशोर सुषमा सदन श्याम गौर सुख धाम । अंग अंग पर बारिहहिं कोटि कोटि सत काम ।" पधार गए उसकी कुटी पर । उन्होंने शबरी को अपनी भगति प्रदान की , मुनि दुर्लभ अपना लोक प्रदान किया यहां तक कि उसके जूठे बेर भी जानते हुए खाये ऐसी चेष्ठा थी राम के प्रति उसकी ।
इतना कहकर शिव शांत हो गए ।

मैंने पूछा - हे नीलकंठ ! इसका अर्थ क्या हुआ इसकी गूढ़ता को समझना मुझ मन्दमति की बुद्धि के बाहर का विषय है ।

शिव ने हंसते हुए कहा - तो सुनो मन्दमति ! इस कथा में शबरी तुम जैसे मानवों की प्रतिनिधि है  और राम जिसका अर्थ होता है "रमन्ति यस्य सः रामः" अर्थात जो रमण करता है वही राम है । वो कुछ भी हो सकता है कोई व्यक्ति, वस्तु,ज्ञान अथवा भगवान ।  और जब नामुमकिन सी दिखने वाली चीज भी व्यक्ति शबरी की तरह करता है कि प्रत्येक स्थान पर उसे राम ही राम दिखें  प्रत्येक कार्य उसका राम के लिए हो तो वह उसे अवश्य प्राप्त होती है । शबरी के लिए प्रत्येक दिवस एक अवसर होता था राम से मिलने का वो सारी तैयारियां करके बैठती थी कि "आज मोहे राम मिलेंगे" और पूर्णतः अनासक्त भाव से उसी खुशी से पुनः दूसरे दिन भी बिना थके बिना किसी आलस्य के वही प्रक्रम दोहराती थी इसी प्रकार मानव को एक असफ़लता अथवा असफलताओं की एक श्रेणी हो जाने पर भी निराश नहीं होना चाहिए उसी माद्दे के साथ पुनः खड़े होना चाहिए कुटिया बुहारनी चाहिए और पथ को सजाना चाहिए और फिर इसी आशा में कर्म में जुट जाना चाहिए कि "आज मोहे राम मिलेंगे ।"

शिव से इतना सुनकर मुझे लगा सच में अब कोई बोझ नहीं बचा मैंने उन्हें धन्यवाद ज्ञापित किया और पुनः आ गया वापस अपने घर । 

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