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यदि ऐसा हुआ तो ?

18 सितम्बर 2016 उगता हुआ सूर्य एक त्रासदी लेकर आया हमारे देश के 17 सैनिक पाक समर्थित लश्कर के हमले में शहीद हो गए जो की देश के लिए अत्यंत दुःखद घटना रही सम्पूर्ण देश दुःख के समंदर में डूब गया । हर तरफ सरकर पर एक प्रभावी कार्यवाही और युद्ध करने के लिए दबाव बनने लगा । वास्तव में हर व्यक्ति बदला चाहता था पाकिस्तान से उन अपने प्रिय 17 जवानों के जिनके जाने देश के 17 परिवार सूने हो गए । आम इंसान तो न राजनीती जानता है और न कूटनीति उसे तो बस यही समझ आता है साहब मेरे हृदय में रहने वालों का बुरा करने वालो को सज़ा मिलनी चाहिए और वो उसी के लिए सरकारों पर दबाव बनाता है । अगर हम देखें तो पाते है इन समस्या के समाधान के तीन तरीके दिखते है - 1- *शांतिपूर्ण तरीके से समाधान* 2- *युद्ध द्वारा समाधान*  3- *संघर्ष द्वारा समाधान*  * शांतिपूर्ण तरीको से समाधान* इसको हम पुनः तीन हिस्सों में बांटकर समझ सकते है - * शांति की पहल द्वारा* जिसके अंतर्गत वार्ता , मध्यस्थता, जाँच, समझौता, विवाचन,न्यायिककार्यवाही, संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयास । परन्तु वास्तव में ये हम 1947 से आजमाते चले आ रहे है पर पाकिस्तान

आत्ममुग्धता और चारण गान ।।

आज मैं एक राष्ट्रवादी होने के नाते और देश की ये दशा देखने के बाद इस शीर्षक से लिखने के लिए विवश हो रहा हूँ | क्युकी जब मैं भारत के अतीत को देखता हूँ तो मैं बेहद भयाक्रांत हो जाता हूँ इन शब्दों से | ज्यादा पुरानी बात न करते हुए मैं बात शुरू करता हूँ राजपूत काल से तो देखता हूँ की इस प्रकार के कार्यों के चरम पर था ये युग | उस समय राजपूत पूर्णतया आत्ममुग्ध और चारण गान  की आदी हो चुके थे | और परिणति क्या हुई हमारा देश अरब आक्रमणकारियों से हार गया |         उस समय के मशहूर ग्रन्थ परमाल रासों ( आल्ह खंड ) में तो यहाँ तक लिख दिया गया की  “  बारह बरिस ले कूकुर जिए और चुदः ले जिए सियार बरिस अठारह क्षत्रिय जीए की आगे के जीवन का धिक्कार| ”  ये चारण गान की अति थी की हर छोटी मोटी लड़ाई को बढ़ा चढ़ा कर लिखकर रोज लडाइयां होती थी | और राजपूत इतने आत्ममुग्ध थे की वो बिना सोचे किसी भी शत्रु का पीछा किये बिना छोड़ देते थे जो उनके लिए घातक सिद्ध हुआ अगर ११९१ ई में मुहम्मद गोरी को पृथ्वीराज ने बिना आत्ममुग्ध हुआ खदेड़ कर मार दिया होता तो ११९२ ई में पृथ्वीराज खुद न मारे जाते | इसका परिणाम ये हुआ की मेरा देश ज

तर्कबुद्धि से समाधान

उज्जैन में एक बहुत प्रसिद्ध ज्योतिषी और खगोलशास्त्री रहते थे । उनके उनकी पत्नी का प्रसव होने वाला था तो उन्होंने एक गेंद भिजवाई प्रसूति गृह में और कहा कि जैसे बच्चे का जन्म हो ये गेंद बाहर फेंक दे कोई और वो समझकर काल गणना और ज्योतिष गणना कर लेंगे । दुर्योग था कि प्रसूति के दौरान उनकी पत्नी बेहोश हो गयी उसके इलाज में दाई पुत्र जन्म में उपरांत गेंद बाहर फेंकना भूल गयी जब उसे याद आया तो उसने फेंका । जब उन्होंने गणना की तो उनकी गणना में पता चला की इस मुहूर्त में जन्म लेने वाला व्यक्ति वर्णसंकर और कुल नाशक मूढ़ होगा । उन्हें पत्नी पर अविश्वास हुआ और वे पुत्र को देखे बिना  दोनों को छोड़कर चले गए । उनका पुत्र अत्यंत मेधावी था उसने खगोलशास्त्र में प्रवीणता हासिल की और उज्जैन चला गया । एक दिन उन खगोलशास्त्री ने घोषणा की कि आज आकाश से एक पिंड गिरेगा जिसका भार 500ग्राम होगा । वो बालक जो युवा हो चुका था उसने उन्हें चुनौती दी की नही उसका भर 550 ग्राम होगा । उस काल की प्रतीक्षा हीने लगी पिंड आपत हुआ । तौल पर पिंड का वजन वास्तव में 550 ग्राम ही था । ज्योतिषी ने कहा कि कौन सी ऐसी गणना है जो मुझे

पशु अधिकार

भारत विश्व का प्रथम राष्ट्र है जहां पर केवल मानवाधिकारों ही नहीं बल्कि सभी जीवो अर्थात पशुओं के अधिकार की भी बात की गयी है । लगभग 1500 ई0 पू0 के ग्रन्थ ईशोपनिषद में कहा गया है " अपने प्राणियों सहित यह विश्व पृथ्वी का है । कोई प्राणी किसी अन्य से उच्चकोटि का नही है । मानव प्राणी प्रकृति से ऊपर नही होने चाहिए । किसी एक प्रजाति को दूसरी प्रजातियों के अधिकारों और विशेषाधिकारों पर हस्तक्षेप नही करना चाहिए ।" और ऐसा सन्देश देने वाले देश में बलि और क़ुरबानी दी जाती है । अपनी परम्पराएं भूल गए है भारतीय शायद पूर्वजों की थाती कहीं छूट गयी रास्ते में ही जब जीवन के लिए भरपूर अन्न प्राप्त है तो ये निरीह मूक की बलि या क़ुरबानी क्यों ? आप अपने इष्ट को चाहे भगवान् कहें या अल्लाह या कुछ और पर आपके पुरखे एक ही है उनकी परम्परा का त्याग करना वास्तव में अपनी पहचान भूलकर गुलाम बन जाना है । -हिमांशु सिंह 

अभागा

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 ऑफिस में  काम करके थका हुआ घर की तरफ चला मन ही मन सोच रहा था घर पहुँचूँगा तो थोड़ा आराम करूँगा थोड़ा दिमाग फ्रेश होगा । घर पहुचते ही पिता जी ने कहा - सुनो पहले इधर आओ । जी पापा बताइये । अरे भई अपनी बीबी को समझाओ तुम उसे सिर पर चढ़ा रखे हो तुम्हारी माँ से लड़ती है दिनभर कुछ लगाम कसो उसपर । जी पापा । मैं बात करूँगा उनसे । - बोलकर आगे बढ़ना चाहा तभी पीछे से पापा की आवाज सुनाई दी - बात करूँगा नही करो अभी । अभी बरामदे में ही पँहुचा था कि माँ की आवाज सुनाई दी - बेटा आ गया ऑफिस से ? देखो मेरा बेटा कितना दुबला हो गया । ये कलमुंही मेरे बेटे का कुछ ख्याल ही नही रखती बस दिनभर मुझसे लड़ना है और कोई काम ही नही है इसे । बेटा देखो आज मेरे साथ ऐसा - ऐसा किया । खुल गया शिकायतों का पिटारा । बेटा तुम ही कुछ करो इसका पता नही कहाँ से ये चुड़ैल आ गयी मेरे परिवार की शांति भंग हो गयी । ठीक मम्मी देखता हूँ अभी । ये कहकर वो घर में दाखिल हुआ पीछे से मम्मी और पापा के बात करने की आवाज सुनी पापा कह रहे थे ये भी कम थोड़े न है कहने को तो पैदा इन्हें हमने किया पर "लुगाई लट्टू" बने टहल रहे है । मम्मी बोली -