घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा जहां भी घर है हर जगह रही है सदैव भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में यह रही है । यह अलग बात है कि यूरोप ने 20वीं सदी में काफी हद तक काबू पा लिया । भारत भी इस दिशा में काफी सुधर चुका है पर काफी कार्य बाकी रह गया है। मध्य एशिया और पश्चिम एशिया तथा अफ्रीका में ये अभी भी अपने चरम पर है मिस्र जैसे देशों में तो फतवे जारी होते हैं कि कोई व्यक्ति भूखा हो तो काटकर अपनी पत्नी तक को खा सकता है । आइये देखते हैं पहले भारत को की कैसे नारी की स्थिति का “मैं नीर भरी दुःख की बदरी” से “नारी तुम केवल श्रद्धा हो” तक का सफर तय किया जाए । “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते” वाली संस्कृति में आज विचार किया जा रहा है कि कैसे स्त्री की स्थिति में सुधार किया जाए यह बड़ा दुर्भाग्य पूर्ण है । सबसे पहले हमें समस्या के जड़ को जानना होगा कि कैसे याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने वाली गार्गी, वेद मन्त्र रचने वाली लोपमुद्रा, घोषा, अपाला, मैत्रेयी आदि घरों में कैद होकर बस शोभा की वस्तु बन गईं ? उसका सबसे पहला कारण है उनका शिक्षा से दूर हो जाना । आप शिक्षित है तो दूसरे से बुरा बर्ताव कर भी सकते हैं किंतु किसी विद्वान