चक्रव्यूह
चक्रव्यूह ============================= अभिमन्यु को देखा ऐसा लग रहा था मानो स्वयं कामदेव ने पुष्पबाण छोडकर कालदंड धारण कर लिया हो अथवा महादेव पिनाक धारण करके रथ पर बैठ चले आ रहे हों | समाने चतुर धनुर्वेद के मर्मज्ञ आचार्य द्रोण द्वारा निर्मित चक्रव्यूह था ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सातो सिन्धुओं को कुरुक्षेत्र में बांध दिया हो | वह चक्र एक बार आगे बढ़ता और पांडवों के ग्राम व्यूह का एक हिस्सा निगल जाता था | अभिमन्यु ने सारथि से कहा इस बार जैसे ही आगे बढ़ने को व्यूह का मुंह खुले तुरंत प्रवेश करो व्यूह में जैसे ही व्यूह आगे बढ़ने के लिए व्यूह का मुंह खुला और सैनिक ढाल से निरावृत हुए अभिमन्यु ने अपने तरकश का मुंह उनपर खोल दिया भगवान कृष्ण के इस शिष्य के बाण चलाने का कौशल देख उषा और प्रत्युषा भी शर्मा जाएँ जो सूर्य के रथ पर खड़ी हो अपने बाण से अन्धकार का नाश करती हैं उन्ही की तरह अभिमन्यु भी कुरु सेना का नाश करने लगा | प्रथम द्वार की रक्षा का भार जयद्रथ को सौपा गया था जो कि भगवान शिव के वरदान से आज के दिन अर्जुन के अतिरिक्त अन्य चारो पांडवों के लिए अविजित था | अभिमन्यु जयद्रथ को हरा आगे