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Showing posts from August, 2018

चक्रव्यूह

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चक्रव्यूह ============================= अभिमन्यु को देखा ऐसा लग रहा था मानो स्वयं कामदेव ने पुष्पबाण छोडकर कालदंड धारण कर लिया हो अथवा महादेव पिनाक धारण करके रथ पर बैठ चले आ रहे हों | समाने चतुर धनुर्वेद के मर्मज्ञ आचार्य द्रोण द्वारा निर्मित चक्रव्यूह था ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सातो सिन्धुओं को कुरुक्षेत्र में बांध दिया हो | वह चक्र एक बार आगे बढ़ता और पांडवों के ग्राम व्यूह का एक हिस्सा निगल जाता था | अभिमन्यु ने सारथि से कहा इस बार जैसे ही आगे बढ़ने को व्यूह का मुंह खुले तुरंत प्रवेश करो व्यूह में जैसे ही व्यूह आगे बढ़ने के लिए व्यूह का मुंह खुला और सैनिक ढाल से निरावृत हुए अभिमन्यु ने अपने तरकश का मुंह उनपर खोल दिया भगवान कृष्ण के इस शिष्य के बाण चलाने का कौशल देख उषा और प्रत्युषा भी शर्मा जाएँ जो सूर्य के रथ पर खड़ी हो अपने बाण से अन्धकार का नाश करती हैं उन्ही की तरह अभिमन्यु भी कुरु सेना का नाश करने लगा | प्रथम द्वार की रक्षा का भार जयद्रथ को सौपा गया था जो कि भगवान शिव के वरदान से आज के दिन अर्जुन के अतिरिक्त अन्य चारो पांडवों के लिए अविजित था | अभिमन्यु जयद्रथ को हरा आगे

लोक बर्ताव

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लोक बर्ताव ============================== खूब लम्बी चौड़ी भीड़ देखकर मुझे मुझे गुस्सा आया बाहर खड़े नियंत्रक से दुर्वाद करके मैं यह कहते हुए चला आया “मेरे लिए तो अब शिव के पास भी वक्त नहीं बचा है, अब मैं जा रहा हूँ फिर कभी नहीं लौटूंगा; रहें सब अपने इन दिखावे के भक्तों के साथ जो धन सम्पदा, पत्नी, पुत्र आदि पाने के लिए इनकी भक्ति या चापलूसी करते हैं |” मैं अभी कुछ दूर ही आगे आया था कि पीछे से किसी की आवाज सुनाई दी जो मुझे बुला रहा था | देखा तो पसीने से लथपथ भृंगी अपनी तोंद पकड़े हुए भागा आ रहा था | मेरे पास आकर बोला – “तुम्हारे कानों में क्या हो गया है हिमांशु ? शिव ने आवाज दी इतनी बार तुम सुने ही नहीं अब मुझे देखो यहाँ तक दौड़ना पड़ा | चलो जल्दी शिव बुला रहे हैं |” मैं आया मुझे देखते ही शिव बोले तुझे ज्यादा गुस्सा आने लगा है ? तू डांट खाकर सुधर जाएगा या फिर थप्पड़ से इलाज करना पड़ेगा | मैं सर झुकाए खड़ा रहा | शिव बोले क्या करूं इस लडके का बचपना जाता ही नहीं है, हर थोड़ी देर में बेकार की बात करता है और बिदक कर मेरी बराबरी करने लगता है कि शिव को क्रोध आता है मुझे भी आता है जल्दी से | अरे प

छल

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छल ============================ महाभारत के बारे में सुनकर और रश्मिरथी पढकर मन बहुत खिन्न था | आखिर जब छल से भीष्म, द्रोण, कर्ण, दुर्योधन आदि का वध छल से हुआ तो फिर धर्म कहाँ से पांडव के पक्ष में ? अब इसके इलाज के लिए एक ही आसरा था शिव के पास जाऊं | पंहुचा शिव के पास; देखा शिव गणों को कुछ आदेश दे रहे थे, मैं थोड़ी देर खड़ा रहा फिर जब शिव मुक्त हुए तो उनका अभिवादन किया | शिव का आशीर्वाद मिला देख शिव बोले क्या बात है आज कुछ खिन्न सा दिख रहा बालक | अभी भी डांट की बात मन में बसाया हुआ है ? मैंने कहा महादेव आपसे खिन्न होकर कोई कहां जायेगा | आप मेरे कल्याण का ही साधन करते हो | बस एक पीड़ा है हृदय में वही कहनी थी आपसे | महादेव के आदेश पर उन्हें पूरी बात बताई | महादेव जोर से हंसे और बस इतनी सी बात ? अभी तुम्हें वास्तव में छल और युक्ति का अंतर नहीं पता है इसलिए तुन्हें छल लगा | मैंने कहा महादेव तो आप ही बताइए न | शिव बोले – सुन हिमांशु ! ये अंतर समझने के लिए तुम्हें पहले धर्म को समझना होगा | धर्म का अर्थ होता है प्राणियों के कल्याण के लिए धारण किये जाने वाले कर्तव्य | धर्म तीन प्रकार के होत